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________________ ट्रंक नोंध (१) 'व्यवहार भाष्य'नी एक गाथानी पाठचर्चा जैन विश्व भारती, लाडनूं तरफथी ताजेतरमां (ई.१९९६) प्रकाशित थयेल 'व्यवहार भाष्य'मां एक गाथाना पाठांश विषे नोंध करवी छे. मुद्रित ग्रंथना पृष्ठांक २५० पर गाथा २६३५नो पाठ आ प्रमाणे छ : लक्खणजुत्ता पडिमा पासादीया समत्तऽलंकारा । पल्हायति जध वयणं, तह निज्जर मो वियाणाहि ।। अहीं तृतीय चरणमां वयणं' थी 'वदन-मुख' अपेक्षित छ । एम सहज समजाय छे. ए साथे ज मनमां प्रश्न ऊगे के वदन-विकास संभवे, वदनप्रहलाद कई रीते संभवे ? आनन्दप्रद चीजने जोतां नेत्र विस्फारित थाय, वदन विकस्वर थाय अने चित्त प्रसन्नता/आहलाद अनुभवे - आ योग्य तेम मान्य प्रक्रिया गणाय. । आनो उत्तर साव अणकल्पी रीते जडी आव्यो. आ. हरिभद्रसूरिकृत 'षोडशक प्रकरण'नी श्रीयशोविजयजीकृत टीकामां एक संदर्भमां आ गाथाने उद्धृत करेल छे, अने तेमां तेओए स्वीकारेल पाठ आवो छ : ___'पल्हायइ जह व मणं' ॥ (षोडशक ७/१२, मु. पत्र ३९, ई १९११, सूरत). आ पाठ वांचतां ज मान्य प्रक्रियानो अने तेने अनुरूप पाठांशनो मेळ मळी रहे छे. अहीं भाष्यकार एम कहेवा मागे छे के प्रतिमा जेम (वधु) मनने प्रह्लादित करे, एटले के 'प्रतिमाने नीरखतां मन जेम (वधु) प्रह्लाद अनुभवे', 'तेम (वधु) निर्जरा थती जाण.' स्पष्ट छे के अहीं प्रतिमाने जोतां मों विकसे के हसुं हसुं थतुं होय ए अभिप्रेत नथी, पण मन प्रफुल्लित थाय ए अपेक्षित छे. वात रही पाठनी. एनुं तो एवं छे के लहियाओना मरोड एवा तो खूबीदार होय छे के 'म', 'स' 'य' त्रणे वांची शकाय. वांचनार पासे अर्थसंगति माटेनी पारंपरिक सज्जता जेवी अने जेटली होय, ते रीते ते बेसाडी शके. घणीवार बंधबेसतुं पण लागे. परंतु बधो वखत तेम न पण होय, एम आ दाखला उपरथी समजी शकाय. मजा तो ए छे के 'व मणं' एवो पाठभेद पण संपादिकाए आ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520510
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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