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________________ महेश्वरकविरचिता संशयगरलजाङ्गली-नाममाला - सं. विजयशीलचन्द्रसूरि आ महेश्वर कवि विशे मने जाणकारी नथी. मात्र हस्तप्रतमां आ नाममाला जोई, तेमांना शब्दोनुं वैविध्य जरा महत्त्वपूर्ण तथा चमत्कृतिजनक जणातां, ते शब्दना तथा भाषाना अभ्यासुओने उपयोगी थाय तेवू लागवाथी तेनुं संपादन अहीं रजू कर्यु छे. आ नाममाला हजी प्रकाशित नथी थई, एवी मारी धारणा छे. ओछामां ओछु, मारा जाणवा-जोवामां तो हजी नथी आवी. आ नाममालानी प्रति भावनगरनी जैन आत्मानन्द सभामां छे. कुल ७ पत्रोनी आ प्रतमा पत्र १ थी ५मां प्रस्तुत कृति छे, अने पछीना पृष्ठोमां 'हैमनाममालाशिलोंछ' छे, जे अपूर्ण रही गयो छे. प्रस्तुत कृतिना छेडे लखेली पुष्पिका उपरथी जाणवा मळे छे तेम, आ प्रत सं. १७९९मां जैनमुनि जिनेन्द्रसागरे स्तंभतीर्थमां लखेली छे. नाममालाना २३४-३५मां पद्यो परथी महेश्वर कवि शब्दशास्त्र, वैद्यक वगेरेना समर्थ विद्वान, कवि तथा 'साहसांकचरित' वगेरे ग्रंथोना प्रणेता होवानुं समजाय छे. नाममालाना प्रथम पद्यमां जणाव्युं छे तेम, आनुं नाम 'शब्दभेद प्रकाश' पण छे. प्रतिलेखके संशयगरलजाङ्गली' एवं नाम, २३७मां पद्यमांना 'संशयं च निराकर्तुं' ए अंशने ध्यानमा राखीने प्रयोज्यं होय के पछी तेमनी पासे आ रचनाने आ नामे ओळखवानी परंपरा पण होय तो ते संभवित छे. नाममाला बे मुख्य भागोमां विभक्त छे : पहेलो भाग 'शब्दप्रभेद निर्देश' छे, जेमां मुख्यत्वे जुदा जुदा शब्दोमां थता सामान्य फेरफारोने लीधे बनता शब्दोनुं निरूपण छे. बीजा भागमां ब, व, श, ष, स वगेरेनुं प्राधान्य विचारीने एकत्र करेला शब्दजूथो छे. आशा छे के आ रचना शाब्दिकोने उपयोगी बनशे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520510
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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