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________________ [57] इम दिंती बहु आसीस जाम नरवाहणि भुअ - विचि लिद्ध ताम ।। ५२४ बिहु मिलिय महासुह कंठ - देस आलिंगण - रंग- सुरंग - वेस । तिणि खणि सुअ - संगमि पत्त - सुक्ख नरवाहणि पामिय जेम सुक्ख ॥। ५२५ दूहा ( राग मल्हार ) अगलिय-नेह - निवट्टहाँ, जोअण- लक्खु वि जाउ । वरिस सएण - वि जो मिलइ सहि सो सुक्खहँ ठाउ ॥ ५२६ मेहा मोरादादुरां० ॥५२७ गाथा इअ जाणिऊण राया, जाया मंदाणराग-हिय - हियओ । जंपइ कहु पुत्त तुमं, कहं ठिउ विम्हरितु अम्हं ।। ५२८ सो पहरो पाव- -हरो, सा घडिया सुकइ कम्म साघडिया | सा वेला सुहवेला, जं दीसइ पुत्त - मुह - कमलं ॥ ५२९ चालि धन धन्न सुअ दिन अज्ज, धन धन्न इह मुझ रज्ज । धन धन्न जीविय देह, जिह मिलिउ तउँ गुण - गेह ॥ ५३० किम जाण जाणिय मग्ग निय पियर संगम सग्ग | किम किद्ध अम्ह बहु सार, जं मिल्हि गिउ निरधार ॥ ५३१ जं किउ अम्ह कुण दोस, तं खमि न खमि बहु - रोस । तुं पुत्त गुणहि गरि निय-पुण्णि तिहुयणि इट्ठ ॥ ५३२ हिव हुऊ पाव- विराम, सोनइ म लग्गि साम । अम्ह मिलिउ पेम - पियार, तउँ पुत्त बहु-गुण- सार ॥ ५३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520508
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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