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________________ [55] मुक्कलिय इम बहुभेट, कमि पत्त चंपह थेट ।। ५०८ ते जाणि मणि महिंद, ललियंग-कुमर-नरिंद । संमुहिय संमुह कज्जि, हयगय-सुरह-भडसज्जि ॥ ५०९ वस्तु बहुअ उच्छवि बहुअ उच्छवि मिलिय समुदाय । नरवाहण-मंतीस-वर कुमर-राय जिअअरि सु-परियरि नयर- माहि नियमंदिरिहिं, लिद्ध ते वि उच्छव सु-परियरि । पुच्छिय सहु वित्तंत, तसु लज्जिउ निय मणि भूव चिंतइ अहह कि माहरूँ ए कहु कवण सरूव ।। ५१० लेइय अंकिहिँ, लेइय अंकिहिँ, राय निय-पुत्ति झत्ति झडत अंसुय नयण, वयण एम जंपइ नराहिव तउँ जि पनूती पुन-लगि जास एह बहु गुण सु साहिव ।। धिद्धि मुझ मइ-मोह बहु, जसु एरिस अवियार वच्छे कारणि तिणि अम्हे, लेसिउँ संयम-भार ॥ ५११ चालि इम कहिय रहिय-वियार, बहु लद्ध धम्म-वियार । थप्पइ सु कुमर-नरिंद, निय सयल-रज्जि नरिंद ।। ५१२ समुहुत्त दिवस-विसेसि, किय तासु रज्जभिसेसि ।। सहु खमिय खामिय रोस, तसु सुयण कारिय दोस ॥ ५१३ ललिअंग-रायकुमारि, सिउँ सहुअ निय-परिवारि । मुकलावि निव जियसत्तु, जिय-मोह-मयण-दुसत्तु ।। ५१४ लहु पत्त तव वण-अंति, बहु तविय तव एकंति । खण चत्त पावपमाय, हुअ सग्गि सुरवर-राय ॥ ५१५।।युग्मम्।। गाथा अह राया ललिअंगो, ललिअंग चंप-नयरि-वर-रज्जं । कुणमाणो कयसुकयं, जाओ लोयाण सुह-हेऊ ॥ २६-२ अह एगया सुपुच्छिय, सुपरिक्खिय नामयं निरं सइवं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520508
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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