SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [47] रोडिल्ला छंद संक्या सयल सुर-नरेस, पायालिनाग असेस, मेल्हति धरणि सेस, सूभर-भरं । चलइँ चउदिसि दिग्गय-चक्क, हुअंतिसु हक्कोहक्क, भज्जंति कायर फक्क, नासतनरं ।। कंपइ सयल कुल-गिरिंद, चालंत मत्त-गयंद, ढलंत ढालसु-विंध, सोहतघणं । इम मिलंति कुमर-सेन फिरंति अंबरि सेन, डरंति दुयण केन, देखत खणं ।। ४४० खणि खणि मिलिय महा-दल समहरि विलसइं वीर महाबलि समहरि । सिंह-नादि सामत्थिम दक्खई निय-कुल-ठामि सामि छल रक्खइं ॥ ४४१ नाराचछंद रहंति नाम चंद जाम तासु सग्ग-संवरा वरंति जीणि हेउ तीणि जुज्झ-कज्ज-सुंदरा । सुजोड जीण जरद अंगि जीव-रक्ख-सोहिया मिलंति सूर समर-तूर-सद्द-नद्द-खोहिया ॥ ४४२ खुहिय खित्ति नीसाण-निनदिहिं ढमढम-ढक्क-ढुल्ल-घण-सद्दिहिं । भरर-भेरि-भंकार ति वज्जइँ जाणि कि पावस थण घण गज्जइँ ॥ ४४३ गगनगति गज्जंति मेह कि गयणि गडयड गुरूअ-गइवर-मंडलं बह छत्त-धयवड-सीस-सीकिर-छन्न-रवि-ससि-मंडलं । तरवारि-तीर-सुतरल-तोमर-चक्ककुंत-सुसत्थयं खण-खित्ति इम दुइ सिन्न समवडि अन्नमन्न सुपत्थियं ॥ ४४४ यमकबोल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520508
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy