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तिणि प्रस्तावि ते श्रीललितांगकुमार आपणउ सकल दल मेली राजा सामुहउ आविउ, आवतउ जि श्रीजितुशत्रु-राजाई बोलाविउ, काँइ रे कोरी !, तइँ आपणा कुलतणी वात चोरी, माहरी पुत्रिका-तणउँ पाणि-ग्रहण कीधउँ, तउँ इणि वातइँ तइँ माहाँ सिउँ काम सीधउँ, पिण हिव जोई 'माहरी वात, करउँ जि ताहरु घात, तउ इम जाणे ए भलउ महारात ॥४४५ तिवारइ इस्याँ महराय-तणाँ वचन श्रवण-संपुटि धरी, दक्षिणहाथि खड्ग सज्ज करी, पूँछि वल घालि, सामहउ चाली, वलतुं श्रीललितांग-कुमरि राजा बोलाविउ, महाराज साँभलि राजनीति, उत्तम पुरुष कदापि न पडइ छीति, पाणि जइ सूर सूर-आगलि भाजइ, तउ आपणउ उत्तम वंस लाजइ ।। ४४६ संग्रामि चड्या क्षत्रिय न गिणई संग पण न सगाई, पिण एक वार मुझ सिउँ संग्राम कीधा विण तुम्हे एवडी वात कोइ फुरमाई, इम कही नि अन्योन्य राजा नइँ कुमर हस्या, स-दंडायुध लेई परस्परइ सुभट सुभट प्रति साम्हा धस्या, हुवा लागउँ जूझ, किसँ वर्णवि अबूझ, वात कहताँ रोमांच ऊपजइ अंगि, ते राउत भला जे झूझि रणांगणि रंगि ॥ ४४७
पद्धडी गय गजवर हयवर हय जुडंति रह पायक पायक-सिउँ भिडंति । झल हलइ खग्ग खर करि कराल जाणीइ कि अहिणव विज्जु-झाल ।। ४४८
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