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चालि इम चिंति चित्ति कुमार, रूपिहिँ कि अहिणव मार। नवि करइ एह विवत्थ, मुं पडिय इसिय अवत्थ ।।२४७ पहिरतु जे पटकूल, ते वसइ वणतरु कूल । माणतु जस वरपान, करि धरइ ते वड-पान ।।२४८ जसु वेणु वीणसुराव, ते सुणइ पक्खिय राव । करतु कुतूहल-केलि, सु जि फिरइ विचि वन केलि ॥२४९ देखतु नाटक-रंग, देखइ न ते निय अंग। चडतु जि चंचलिवाहि, तसु अंगि आहि कि वाहि ॥२५० करतु जि कर करवालि, ते करइ करि करवालि। सूतउ जि सेज-पलंक, सु जि रडइ जिम जगि रंक ।। २५१ रमतउ जि हय वाहियालि x x x x x बिसतु चाउरि चंगु, बिसइ सु तरु-सट्टंग ।।२५२ वज्जंता ढुल्ल मृदंग, सु जि पंडु पंडु मृदंग । सुणतउ जि जय जय बुल्ल, सु जि सुणइ वायस-हुल्ल ॥२५३ जसु माण दितु भूप, सु जि चक्खु हुअ मरु-कूव। इम दुक्खि दुहिलउ होइ, ललिअंग नयण-विजोइ ।।२५४
इति श्री विद्या-कल्प-वल्ली-महानन्द-कन्द २, प्रणतानेकराय-वजीर-नरनायक-मुकुट-कोटि-घृष्ट-पादारविन्द (१) ।
__ श्रीश्रीभालीवंशावतंस, अनेक-सुविवेक-छेक-छत्राधिपति-महानरेन्द्र-कृतप्रशंस(२)
कूर्चाल सरस्वती बिरदधर, पुरष-रत्न-वर(३) षट्दर्शनीगुर्वाशाकल्पितानल्पदान-कल्प-द्रुम, अगण्य-दान-पुण्य-प्रसारनिर्जिताशेष बलि-कर्ण-विक्रमार्क-भोजप्रमुख भूपाल, श्रीमदर्हद्देवगुरुचरण-तामरस परिचर्या-मराल, मलिकराजश्रीपुञ्जराजकारिते संडेसरागच्छे श्रीईस्वरसूरि विरचिते पुण्यप्रसंसाप्रबंधे प्राकृतबंधे श्रीललितांग-- चरित्रे रासकचूडामणौ श्रीललितांग-सज्जन पाप-पुण्य-प्रसंसाभि वाद ललितांगदुःखावस्था-वर्णन-प्रकारो नाम द्वितीयोऽधिकारः ॥२॥
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