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________________ [22] तसु रम्म रण्णह कूलि, लहु जाइ वड-तरु-मूलि । भुअ-दंड उब्भवि बेवि, विनवइ कर जोडेवि ॥२३७ वस्तु कुमर जंपइ कुमर जंपइ, सुणउ ससि सूर, वणदेवति सवि सुणउ, सुणउ तार गह-गण विणायग, धम्म एक जयवंत जगि, दीण-दुहिय-जय-जंतु-नायग, तासु कज्जिहिउं निय नयण, वयण विराम विसेस, बिज्जउँ भय-तम-पमुह नवि, कारण किंपि असेस ॥२३८ चालि इम कहिय रहिय कुरोस, गिणतउ न सज्जण दोस । रोमंच-अंचिय गत्त, जाणि कि पमोयह पत्त ।।२३९ कड्डियसु करि करवाल, अहिणव कि विज्ज झमाल । उप्पाडि तिणि नीय नयण, दिद्धं, सहत्थिहिं सुयण ॥२४० सिरि नास फुल्लवियास, तुअ धम्म दुम्मह यास । अंधत्त कल बहुमाणि, किय कम्म तणइँ पमाणि ॥२४१ पच्चारि इम ते दुठ्ठ, ललियंगकुमर विसिट्ठ। गिउ तुरिय तुरयारूढ, किणि दिसिहि दिसि वा मूढ ॥२४२ दूहा अह चिंतइ निय-मणि कुमरु नयण बाह-बहु-रुद्ध । फिट रे दैव किसुँ कि अउँ जं एवड दुह दिद्ध ॥२४३ रज्ज-भंस रण्णिहिँ वसण, निचलय(?) चक्खु-विणास । एवड दुह किम सहिसिरे, हियडा फुट्टि हयास ॥२४४ छोटडा दूहा इम जाणीइ पिण कीजइ किसुउँ। जइ जोईइ तु आपणउँ कर्म इसउँ॥२४५ तउ इम जाणी-नइ रहीइ संतोसइँ। जे सुह संतोसइँ ते नहीं बहु सोसइँ ।।२४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520508
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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