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इक्क धम्म अविहड मित्त, जसु सुहिय निम्मल चित्त । जिहँ थकु हुइ सुभद्द, निदीइ ते किम भद्द ।।२२४ इम सुणिय नित्र सुअ-वयण, तव सुयण विहसियवयण । बुल्लइ ति बोल कुबोल, जाणि किं पडइ गिरि-टोल ।।२२५ दीसंति तुअ बहु भद्द, संपइ न मिल्हसि वद्द । जइ मूढ तुं नवि होइ, पहाण सच्चउँ सोइ ।।२२६ जह केवि गाम-गमार, जणणी-भणिउ इकवार । गहियत्थ कहमवि पुत्त, मिल्हविउ नवि कुल-पुत्त ।।२२७ अभया जणणिअ पुच्छि, विलगउँ ति संडह पुच्छि। करि धरिय निय-बल-माणि, तिहँ लोय मिलिय अमाणि ।।२२८ तसु मत्त-लत्त-पहारि, पडिया सु दंत विचारि। . मिल्हि न पुच्छ सहूढ तिम तुम-वि होइसि मूढ ॥२२९ कुलपुत्रकथा पुच्छइ सुयण कहि देव, सिउँ करिसि पणि पुणि हेव । विण नयण-कमल न अत्थि, तुअ किंपि सत्थि सुअस्थि ।।२३० अमरिस-भरियह ती वयणि, हिं कुमरवर तीणि । तसु वयण अंगियकार, किय जेम करवत-धार ॥ २३१ पडिवन्न वाचावीर, ललियंग साहस-धीर। सुह सुयण इक्किहिं गामि, पन्नउ ति साखा-नामि ॥२३२ भवियव्व-कम्म-नियोगि, पुच्छइ ति गाम नियोगि । पुण कहिउ तिम तिणि वार जिम पुव्व-गाम-गमार ॥२३३ अह चलिय पुण दुइ मग्गि, जंपिइ सुयण तसु अग्गि । सुणि सच्च कुमर नरिंद, तुं पुहवि जाण कि इंद ॥२३४ बहु सच्च सील निहाण, तुअ समउ जगि कोइ न जाण । निय-अप्पि अप्प निहालि, पडिवन्न वाचा पालि ॥२३५ उल्लंठ वयणिहिँ तास झलहलिय तेय-पयास । जिण साण घसिय कवाण, दिपउ सुकुमर पहाण ।।२३६
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