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________________ [24] गाथा इह दुह-दुत्थावत्था-नइपूरि निछुट्टमाणसो कुमरो । चिंतइ अहो किमेवं, मम धम्मरयस्स संजायं ॥२५५ तं चेव सुयणवयणं, कह सुपमाणं वडं जुगं मे वि । न उणो नायं सिद्धी, कई तरिया हवइ धम्मे ॥२५६ जह अंगमल विसुद्धी, खलि-तिल्लया-पमुह-वत्थु-सत्थेहिं । किज्जइ पुव्वमपुव्वं, तउ तस धम्मस्स धुवसिद्धी ।। २५७ धिद्धी मे मोहमई, जेणेरसि चिंतणं विलोमस्स । धम्मो धुवं जगत्तिय-जय-हेऊ तनही होइ ॥ २५८ दूहउ रूसउ सज्जण हसउ जण, निंद करउ सहु लोइ। जिणवर-आण वहंतडाँ, जिम भावइ तिम होइ ॥२५९ गाथा इअ निअमणो सु वेरग्ग-संकलियाए निजंतिऊण पुणो । चलमघुडु-व्व कुमरो अइ-वहइ वाह बहुल-दिणं ॥२६० पद्धडी छंद संझ-समय सु पहुत्तउ, तिहिँ इत्थंतरिहिँ। तसु दुह-दुहिय कि गिउ रवि, पच्छिम-अंतरिहिँ। निय-निय-नीड-निलीण के पुण महासरिहिँ पक्खिय सवि कंदंति सुजंत महासरहिँ ।।२६१ दहदिसि हुई कि तिणि दुहि कज्जल-काल-मुह तारय-गण दुज्जण जण दक्खइ अप्प-सुह । पउमिणि-संड विसंडियमाण कि पिय विरहिं महुअरु-मिस-विस गिलई कि सुहमरण-विरहि ॥२६२ चंदनंद चिरकालसुरयणिहिं रायतु अ कुमइणि दिइं आसीस ति विह सीय जलहि सुअ । सस संबर सीयाल सुसद्दिहिं गयणधण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520508
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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