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________________ [4] जीवतणो तुझनें संदेह, जीव अ(छ)इं तुं जांणे एह मन केरो संदेह टालिइं, बोल्यूं वचन मुखथी पालीइं ॥ २२ इंद्रभुत तव संज्यम लीध, वीरें गौतम गणधर कीध अंग इग्यार चौद पूरव भणइं, सूत्र सीद्धांत वीर मुखथी सुणई ।।२३ मन(मति) श्रुत अवधि मनपर्यव ग्यांन, गौतम पाम्यूं च्यार गनांन लबध अट्ठावीस उपनी वली, हाध(?) सीद्ध सीख थाई केवली ॥२४ वीरतणुं हूउं नीरवांण, गौतम पांम्या केवलज्ञांन ॥ विहार करई महिमंडल मांहिं, भविक जीव प्रतिबोधई त्यांह ॥ २५ केवल पर्याय पूरण करी, गौतम स्वामि पंचम गति वरी ते गौतमना जे गुण गाय, सकल मनोरथ पूरण थाय ॥ २६ आर्य क्षेत्र श्रावक कुलमांहिं, गौतम नांमई आवई त्यांहि दीर्घ आयु पंच इंद्री जेह, गौतमनांमई लहीइं तेह ॥ साच्या देव-गुरु साचो धर्म, दान-शील-तप-भावना मर्म सूत्र सिद्धांत सुणवानो भाव, गौतमनांमई एह सभाव ।। सप्तभुमि उंचा आवास, ते मांहिं रहेवानो वास वृषभ-हय-गजसाला जोडि, गौतमनामई पूरई कोडि ।। घर घरणीस्यूं नीर्मल चीत्त, गौतम नांमइं पूत्र विनीत माता पिता बंधवनइं वहू, गौतमनांमई मानइं सहू । नीमजां पस्तां अषोड बदाम, द्राष चारोली मेवा नाम साकरदल आंबारस सार, गौतमनांमई तेहनो आहार ।। खीर खांड धृत साकर सूखडी, सालिं दालिं पोली नई वडी सेव लापसी दुध में दही, गौतमनामई लहीइं सही ॥ पांन सोपारीनो मुखवास, लविंग एलची कपूर बरास काथो चूनो मेल्यो संजोग, गौतमनांमई बीडां भोग ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520507
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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