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________________ [48] अवनीपति पूजसिइ दीवि हरखिइं वली, पासप्रतिमाजलिई कुष्ट जासिइ टली ॥१३।। एहनी आदि न कोई जाणइ सही, वरसनां लाख ज समुद्रमांहि रही। वरुण हुं वासव पूजतु पासनई दीविमंदिरि जई आपयो रायनइं ॥१४ ॥ सेठ धनसारि ते सकल सीख जि करी, वाहण वेगिइ दीवि आव्या तरी । पढम धनसारि परवारसिउं परवर्या, पासजिण-पेटिका लेव करि उतर्या ॥१५॥ सकल जन मेलि करि भेर भुंगल भरि, मुरज नीसाण सरणाइआ सुस्सरिइं । ठाणि ठाणिइं नरनारि वधावीइ, सेठ पेटी लेई राय घरि आवीइ ॥१६।। ताम नरपति भणइ असुख छइ मूंहनई, एवडउ उच्छव करु छउ केहनइं। भेटि आवी छइ रोग जावा तणी, राय आणंदि आ वात श्रवणे सुणी ॥१७॥ वस्तु । सेव॒जि यात्रा २ करी नरनाह दीवि मंदिरि जव आवीआ करम रोगि पीडा नरेसर । तव कुंकुणदेसह थिकी पूरइ वाहण धनसार ।। मंदिर वलता तिहांथीअ सुरवयणि पेटी लेई सार ॥ अति उच्छव राय आगलिई भेटि करइ धनसार ॥१८॥ ढाल पेटीअ संपुट जूजूआ ए नरेसुआ, भूपतिदृष्टिई थाइ । प्रगट्या पास जिणेसरु ए नरेसूआ ऊलट अंगि न माइ ।।१९।। न्हवण करी सुरभि जलिई ए, न० । सींचई रायनि देह । कुष्ट ताप ततखिण टलइ ए, न० । जिम जगि वूठइ मेह ॥ २० ॥ अरचइ चंदनि केसरिइं ए, न० । मेलिअ घन घनसार । . चंपकमाल चडावीइ ए, न० । जाइ जुही मंदार ।। २१ ।। वालउ वेउलि केतकी ए, न० । करणी लाल गुलाल । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520507
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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