SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [47] थानकि थानकि जिन प्रासादि प्रतिमा पूजेई । द्रव्य भाव भेदिइं करी नरभवफल लेई ॥ तलहटीइं आवी नरिंद दिइ संघह मानह । साहमीवच्छल करइ सार याचकनई दान || यात्रा करीनइं पूछिउं ए आघु अच्छइ देस तव मंत्रीसर वींनवइ ए । नि० । 'दीव' छइ बेट नरेस ॥ म० ॥८॥ वस्तु ॥ माय सायर (सारय) २ गोयम गुरु पाय पणमिअ पास 'अजाहरु', नवउं रिसहसुत भरह नरवर तास पुत्त आदित्ययशा सूरि वंशि सिरि अजिअजिणवर । मुणिसुव्वय - नमि अंतरिइं, अरण्यकेतु भूपाल । देश साधी सिद्धाचलिई, यात्रा करी सुविसाल २ ॥ ९ ॥ ठवणि ॥ विमलगिरिवर थिकी दीविमंदिरि गया कर्मवसि कुष्टभरि राय आकुल थया । ताम कुंकुण थिकी मंदिरे पुरिया वाहण धनसारि धणधंनि संपूरिया ॥१०॥ आवतां तिहांथी वाहण वेलई वहइं . बहुल लाभि भरिया समुद्रमांहिं रहइं । वायु वादलि खरं सायरि जल पडइ मरण धन नई भई लोक शोकि रडइ ।।११।। वणिग धनसार तव देव पूजा करइ सार नउकारनउ जाप हीअडइ धरइ । एतलइ देवतावाणि गयणिई हुई पेटीअ लेइयो जलहमांहिं जई ॥१२॥ पेटीअ संपुट आविसिइ जेतलइ, वायु वादल खलं जाइसइ तेतलई । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520507
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy