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'अरण्यकेतु' राजा हूउ लिइ देश पदंड ||
उत्तर पूरव पश्चिम ए साधंतु नरनाह
दक्षिण पासई आवीउ ए नि० । गूजर धरतीमाहिं | म० ||३||
कर्मविशेषां देहमाहिं उप्पन्ना रोग |
कुष्ट अढार करई क्लेश लिई तेहनो भोंग ॥ आधि अधिक वाधि नरिंद तनु आकुल थाइ ॥ भूख तरस भूपतितणी निद्रा वली जाई ||
सकल वैद्य तिहिं तेडीइ ए औषध करई अनेक
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जाण - जोसी सवि पूछी [इ] ए । नि० । रोग न लागइ टेक | म० ॥४॥ कटक अवाटी रहिउ राय अति आरति आणइ ।
तिणि दुखि सहुइ अदन - अरथि नवि बइसइ भाइ ||
तउ प्रधान इंम वनवइ सुणि जगदाधार ।
सोरठदेसह मंडल सत्रुंजय सार ॥
इंहां आसन तीरथ अछइ ए दीठइ दुरगति दुरि
टलइ वलइ वान देहना ए । नि० । अवर न एह सम कोइ । म० ॥५॥
एक कोडाकोडि आठ लाख आठ सहस उदार । भरहादिक नरवर कर्या सेतुंज उद्धार ॥
पूरव नवाणुं रिसहदेव पुहता विहरंता । जिणहर जिणपडिमा असंख वली सिद्ध अनंता ॥
पुंडरीक पंच कोडि सिउं ए द्रविड वाल दस कोडि
मुगति गइ एणइ तीरथिई ए । नि० । अनंती कोडाकोडि । म० ||६||
तीरथमहिमा सुणी राय तव यात्रा आवइ ।
सात क्षेत्र वित वावतु कलि सोह चडावर || पहिलं प्रथम जिणंद पाय भेट सुविचार | स्नात्र महोत्सव आरती मंगलेवु सार ॥ चैत्यवंदन करी नाट रुप वित वावइ भूपाल
धजारोप जिणमंदिर ए । नि० । देई पहिरइ माल । म० ॥७॥
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