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[44] तीर्थनी यात्रा करवा गयो. यात्रा पूर्ण थयेथी राजा स्वदेश पाछा फरवानो ढूंको मार्ग मंत्रीने पूछे छे, जेना जवाबमां मंत्री राजाने (तथा सेनाने) दीवबंदरे लई आवे छे, जेथी दरियाईमार्गे झट पोताने घेर पहोंचाय एवी तेनी धारणा हशे. दीवने 'दीवमंदिर' एवा नामे कवि ओळखावे छे ते अहीं नोंधपात्र छे. .
राजा दीव पहोंचे छे, ते ज अरसामां, कोंकणना सागरखेडू शेठ धनसारनां वहाणो दरियाई तोफानमां सपडातां, शेठे अधिष्ठायक देवनी साधना करी छे, जेना प्रतिभावरूपे थयेली देववाणीथी शेठे जाण्यु के वहाण नीचे पाणीमां पेटी छे, तेमां पार्श्वनाथनी मूर्ति छे. ते पेटी काढो, ते लईने दीव जाव, त्यां राजाने सोंपो, राजा ते मूतिने पूजी तेनुं स्नात्रजल शरीरे चोपडे तो नीरोगी थाय. • शेठे तेमज कर्यु. राजाए पण पूजानुं जल प्रयोजी रोगमुक्ति मेळवी. ते ज रात्रे ते रोगोना देवो राजाने स्वप्नमां आव्या, अने कह्यु के अमारे तो हजी छ मास तमारा शरीरमा रहेवार्नु हतुं, परंतु आ मूर्तिना प्रभाव आगळ अमे लाचार छीए. पण अमारे ते समय तो पूरो करवो ज पडे. माटे एक अज कहेतां बकराना शरीरमां अमे छ मास वास करीशुं, पण ते रोगिष्ठ अजने छ मास तमारे पालवो पडशे. एम कही रोगो अदृश्य थया. बीजी सवारे प्रांगणमां आवेला रोगिष्ठ अजने राजाए अपनाव्यो, ने छ मास तेने पाल्यो, तेथी तेनुं नाम थयुं अजपाल.
ए पछी राजाए ते अजने पाळेलो ते स्थान पर 'अजपुर' नगर वसावी, तेमां मंदिर रचावी, तेमां ते पार्श्वनाथनी प्रतिमानी प्रतिष्ठा करी, अने पछी पोते अयोध्या चाल्यो गयो.
कवि कहे छे के आ घटना श्रीभद्रबाहुस्वामी कृत शत्रुजयकल्पना अनुसार ११ लाख ८२ हजार वर्ष पूर्वे घटी हती. आ थयो कथासंक्षेप.
___ ओ अजपुर ते ज अजागृह अने अत्यारनुं अजारा. अजारामां पार्श्वनाथनी प्रतिमा अत्यारे पण मोजूद छे. ते क्षेत्रमा ज्यां क्यांय पण खोदकाम थाय त्यां कोई ने कोई जैन मूति के स्थापत्यकीय अवशेषो पण मळ्या ज करे छे. थोडा वखत अगाउ पण, अजारा पार्श्वनाथनी अत्यारे छे तेवीज 'सेन्ड स्टोन'नी एक प्रतिमा खंडित हालतमा मळी आवी हती.
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