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________________ श्री धर्ममंगलशिष्य-विरचित श्री अजपुर (अजार)नगरमंडनपार्श्वनाथस्तोत्र (भाषा) ॥ सं. विजयशीलचन्द्रसूरि सौराष्ट्रमां दीव बंदरनी नजीकना ऊना शहेरथी चार-पांच किलोमीटरना अंतरे आवेल जैन तीर्थक्षेत्र 'अजारा' ते ज आ स्तोत्रमा वर्णवेल अजपुर नगर. रामायणना नायक रामना दादा 'अरण्यकेतु' राजाए, पोताना 'अजपाल' एवा बीजा नाम उपरथी स्थापेलुं नगर ते अजपुर-एवं प्रतिपादन आ स्तवनमाथी प्राप्त छे. ते नगरमां निर्मेला जैन मंदिरमा प्रतिष्ठित पार्श्वनाथनी प्रतिमा-जे हाल अजारा पार्श्वनाथ तरीके सुप्रसिद्ध छे तेनुं वर्णन करती, सोळमां शतकमां रचायेली, आ गुजराती गेय रचना छे, जे ३७ कडीओमां विस्तरेली छे. तेनी अंतिम २ कडी जोतां, संवत १५६३मां ऊनानगरमां चोमासुं रहेला, 'धर्ममंगल' नामे गुरुना शिष्य (अनामी) कोई मनिराजे आ रचना करी होवानं प्रतीत थाय छे. अने सं. १६७९मां ऊनामां ज चातुर्मास रहेला गणि भक्तिकुशले आ प्रति लखी छे, तेम तेनी प्रांतपुष्पिकाथी समजाय छे. प्रति १ पानांनी ज छे. कृतिमां वर्णवेली घटना संक्षेपमां आ प्रमाणे छ : प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभदेवना पहेला पुत्र भरत चक्रवर्ती, तेमना मोट पुत्र राजा आदित्ययशा; तेमनाथी 'सूर्यवंश' प्रवयों. ते सूर्यवंशमां असंख्य असंख्य पेढीओ वही गया पछी घणा कालांतरे, अयोध्यामां एक राजा थयो, जेनुं नाम अरण्यकेतु होवानुं आ स्तोत्रमा जाणवा मळे छे. जैन समायण प्रमाणे तेनुं नाम 'अनरण्य' मळे छे. __ आ राजाना पुत्रनुं नाम ज़ दशरथ अने तेना पुत्र राम. राजा अरण्यकेतु दिग्विजयार्थे नीकले छे, अने दक्षिणमां देशो जीततां गुर्जर भूमिमां ते पहोंच्यो त्यां ज तेना पूर्वकर्मना योगे तेना शरीरमा १८ जातिना कुष्ट सहित अनेक रोगो उत्पन्न थई गया. वैद्योनां औषधो अने ज्योतिषी-तांत्रिकोनी क्रियाओ-बधुं ज ते व्याधिओने शमाववाने व्यर्थ नीवड्यु, त्यारे मंत्रीनी सलाहथी राजा नजीकमां आवेला शत्रुजय AMHISH-2MI६ . www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.520507
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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