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अनंतो ज संसार" एहवी कल्पना करइ छइ ते न घटइ, जे माटिं दृष्टांतमात्रिं साध्यसिद्धि नो हि, नहिं तो उत्सूत्र प्ररूपणा अनंतसंसारहेतु कही छइ, तिहां श्राद्ध-प्रतिक्रमणचूर्णि श्राद्धविध्यादिक ग्रंथमां मरीचि दृष्टांत कहिओ छइ तेह भणी मरिचि पणि अनन्तसंसारी हुइ जाइ । तथा सूत्रविराधनाई अनंता जीव चतुरंत संसार भम्या जमालिनिं परिं एहवूं नंदीवृत्तिमां कहिउं छइ ते भणि जमालिनिं च्यारइ गति हुइ जोईइ ॥ ४१ ॥
" जमाली णं भंते ! देवे ताओ देवलोगाओ कहिं गच्छहि कहिं उववज्जिहि । गो० । चत्तारि पंच तिरिक्खजोणिय मणुअ देवभवग्गहणाई संसारं अणुपरिअट्टित्ता तओ पच्छा सिज्झिहिति" (श०९.उ.३३)
ए भगवती सूत्रमां 'चत्तारि पंच' कहतां ९ भेद तिर्यंचना लेईइ इम अनंता भव जमालिनि थाइ एहवूं लिख्यूं छइ ते न मिलई । जे माटिं एहवो विषम अर्थ पूर्वि कइणिं विवरिओ नथी तथा ९ भेद तिर्यंचमां पणि नियमिं अनंता भव आवइ नहीं ||४२||
कोइक तिर्यंचनी कायस्थिति लेई जमालिनिं अनंता भव कहइ छइ ते पणि कल्पना मात्र, जे माटिं सूत्रिं भवग्रहण ज कहियां छइ ॥ ४३ ॥
"च्युत्वा ततः पञ्चकृत्वो, भान्त्वा तिर्यग्नृनाकिषु । अवाप्तबोधिर्निर्वाणं, जमालिः समवाप्स्यति ॥ १ ॥"
ए हैमवीरचरित्रश्लोकमां एहवूं कहिउं छइ जे जमाली तिहांथी चवी ५ वार तिर्यंचमनुष्यदेवतामां भमी मोक्ष जास्यइ । एहथी अनंता भव नथी जणाता, तिहां कोइ कहइ छइ जे ५ वार तिर्यंचमां भमतां अनंता भव थाइ ते न मिलइ, जे माटिं भवग्रहणिं भमतां अनंत भव न घटइ ॥ ४४ ॥
"देव - किब्बिसिया णं भंते ! ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खणं अणंतरं च चइता कहिं गच्छित कहिं उववज्जिति ? गो० जाव चत्तारि पंच णेरइयतिरिक्खजोणियमणुस्सदेवभवग्गहणारं संसारं अणुपरिअट्टित्ता तओ पच्छा सिज्झति बुज्झति जाव अंतं करंति ॥ ( श० ९. उ. ३३)
ए सामान्य सूत्रिं सामान्यथी देव किल्बिषियानिं 'चत्तारि पंच' शब्द थी
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