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________________ [31] अथवा 'जाव' शब्दथी जिम अनंतो संसार लीजइ तिम जमालिनि सूत्रिं पणि 'जाव' शब्द 'ताव' शब्द बाहिरंथी लेइ अनंतो संसार कहवो एहवू लिख्यूं छइ, ते घणूं ज ताण्युं प्रतिभासइ छइ । तथा ए सामान्य सूत्रज एहवू पणि संभवतूं नथी, जे माटिं- “अत्थेगइया अणादीयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरिअमृति" (श० ९. उ. ३३) ए सूत्र अनंत संसारनुं आगलि कहिउं छइ ते माटिं पहिलं सूत्र जमालि सरिखा देव किल्बिषियानूं ज संभवइ ॥४५॥ "अत्थेगइया' ए सूत्र अभव्य विशेषनी अपेक्षाइं, जे मार्टि एहमां छेहडइ निर्वाण नथी कहिउं" एहवू लिख्यूं छइ ते पणि न घटइ , जे मार्टि असंवुडनि सूत्रइं पणि छेहडई निर्वाण कहिउं नथी तथा भव्यविषय पणि एहवां सूत्र घणां छइ ।। ४६ ॥ "तिर्यग्मनुष्यदेवेषु, भ्रान्त्वा स कतिचिद् भवान् । भूत्वा महाविदेहेषु, दूरान्निवृतिमेष्यति ।।" ए उपदेशमालानी कर्णिका श्लोकमां तिर्यंचमनुष्यदेवतामां केतलाएक भव करी जमालि मोक्ष जास्यइ एहवू कहिउं.छइ तेणिं करी अनंता भव नावइ, तिहां कोइ कहइ छड् जे ए भव लोकनिंदित केतलाएक लीधां बीजां सूक्ष्म एकेन्द्रियादिकमां अनंता जाणवा",एह पणि घणुंज ताण्युं जणाइ छइ । जे माटि नाम लेई व्यक्तिं भव कहिया ते थूल किम कहिइ, अनि थाकता अनंता भव पणि स्या थकी जाण्या ? ॥ ४७ ।। "कर्णिकामां दूरि मोक्षिं जास्यइ एहवू कहिउं ते माटि केतलाएक भव कहिया तो पणि थाकता अनंता लेवा" एहवू लिख्यूं छइ ते पणि पोतानी ज इच्छाई, जे मार्टि " तिर्यक्षु कानपि भवानतिवाह्य कांश्चिद् .देवेषु चोपचितसञ्चितकर्मवश्यः । लब्ध्वा ततः सुकृतजन्म गृहे विदेहे, जन्मायमेष्यति सुखैकखनिर्विमुक्तिम् ॥ ए सर्वानन्दसूरि-विरचितोपदेशमालावृत्तिमां 'दूर' पद विनापि केतलाएक ज भव कहिया छइ ॥४८ ॥ Jätin Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520507
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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