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________________ 19 जह वाइदेवसूरी पट्टे उमप गणाविई । तेणं पसन्नचंदो सूरी ठविओ निययपट्टे ॥ ८० ॥ सो अप्पाऊ सग्गं पत्तो ता तस्स चेव पट्टमि । जयसेहरसूरिवरो, पउमप्पहसूरिणा ठविओ ॥ ८१ ॥ जइ ता पिआमहो से कत्थ वि अण्णत्थ अहव नो होइ । तो बंधवेण गुरुणो, ठप्पो सो तस्स पट्टमि ॥८२॥ एवं जइ सो जुग्गो, बंधव सीसो न अप्पणो होइ । एगो दोपण वि पट्टे ठप्पो अणुजेण ता विहिणा ||८३ || संभूयविजय पट्टे, जह ठविओ भद्दबाहुणा गुरुणा । एगो वि थूलभद्दो, तओ स दुण्णं पि पट्टधरो ॥ १८४ ॥ गुरुबंधू वि विदूरे, जइ कत्थवि होइ अहव णो सूरी । ता समकुलो वि सूरी ठवेइ णियमेण तप्पट्टे ॥८५॥ देविंदरपट्टे स माणगुत्तेण सूरिणा ठविओ । जह धम्मघोषसूरी, दिण्णो पट्टो ण जं मिच्छा ॥८६॥ इत्थमभिसे अपत्ता, णियमेणं पट्टधारिणो जाया । बहुआओ साहाओ बहुआई कुलाई ता जुत्तं ॥८७॥ सुबहूणं गच्छाणं, एवं णाणाविहावि परिवाडी । सिविद्धमाण जिणवर तित्थंमि भविस्सई सुचिरं ॥८८॥ जह नंदीए भणिआ महगिरिसामिस्स पट्टपरिवाडी । बहुआओ भिण्णाओ एवं पट्टावलीओ त्ति ॥८९॥ चउरासीइ गणाहिववराणं तस्संखया गणा तम्हा । गणभेया पुण तेसिं इय जुत्ता भिण्णपरिवाडी ॥ ९० ॥ इय अप्पाऊ, पुरिसो पट्टरिहो नेत्ति दूरमुक्खित्तं । तं सु भाविअव्वं, थेरावलिआइ कप्पस्स ॥९१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520507
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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