SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [121] स्पष्टता : आवी नोंध, कदाच सौ प्रथम, तपागच्छीय देवसुन्दरसूरिशिष्य गुणरत्र सूरि द्वारा गुरुपर्वक्रमवर्णन (सं. १४६६ - ई.स. १४१०) अंतर्गत, अने ते पछी तपागच्छीय धर्मसागरनी पट्टावली (सं. १६४८ / इ.स. १५९२) मां थयेली छे खरी; परन्तु ते बधी ज कृतिओ उत्तर - मध्यकालीन अने एथी स्पष्टतया बहु मोडेनी छे. ते सौमां कर्ताओना पोताना गच्छ पूर्वेनी, अने विशेषे मध्यकाल पहेलांना समय प्रसंगे थयेली नोंधोमां अनेक औतिहासिक विसंगतताओ, विपर्यासो अने काल्पनिकताओनी भरमार जोवा मळे छे. कोटिकना उद्भव माटे सत्य हकीकत तो अत्यंत प्राचीन एवी पर्युषणाकल्प (संकलन प्राय: इस्वी ५०३ वा ५१६) अंतर्गत समाविष्ट 'स्थविरावली' मां ज्यां आ गणनो प्रथम ज वार उल्लेख थयो छे त्यां 'संक्षिप्त वाचना' मां आ प्रमाणे ( अर्धमागधी भाषा - रूपो अनुसार) कह्यु छे. "थेरस्स नं अज्ज सुहस्तीस्स वासिस गुत्तस्स अंतेवासी दुबे थेरा सुठ्ठीय-सुपडिबुद्धा कोटिय काकंदगा वग्धावच्चस गुत्ता ॥ अने आगळ विस्तृत वाचनामां पण एवं ज विधान मळे छे. 'थेरेहिंतो सुट्ठिय- सुपडिबुध्धेहिंतो कोटिय काकंदएहिंतो वग्धावच्चस गुत्तेहिंतो इत्थनं कोटियगणे नाम गणे निग्गए...... " " पहेला उद्धरणनो अर्थ छे : " वासिष्ठगोत्रीय आर्य सुहस्तीना व्याघ्रापत्य गोत्रना अंतेवासी, कोटि (वर्ष) अने काकंदी (बिहारमां हालनुं खुखुंदा) ना (मूळ) रहेवासी, सुस्थित अने सुप्रतिबद्ध नामे बे स्थविरो हता." बीजी नोंधमां विशेषमां तेमनाथी कोटीय (कौटिक ) गण नीकण्यो तेम स्पष्टता करी छे. आ नोंधो इस्वीसनना आरंभकाळ जेटली प्राचीन छे. कुषाणकालीन अभिलेखो (इस्वी बीजीथी चोथी शताब्दी) मां प्रस्तुत कोटिक गण माटे "कोटियातो गणातो एवी रीतना उल्लेख छे. प्राचीन गणोनां नामो आचार्यो के पछी गामना नामो परथी, शाखाओ गामनां नामो परथी अने कुलो मोटो भागे आचार्योनां नामो परथी पडतां. कौटिक गण कोटि (वर्ष) परी निष्पन्न होवानो मुनिवर कल्याणविजयजीने पण अभिप्रेत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520507
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy