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[104] बनावेल थूभने काळांतरे अहीं, लई आववा माटे, सामाजिक, राजकीय, धार्मिक के वहीवटी कोई जात, कारण देखातुं पण नथी.
५. जो आपणा अंत:करणनां स्पंदनोने श्रद्धेय प्रमाण गणीए तो यशोवाटिकाना थूभनी समक्ष बेसतां श्रद्धालु जनने जे अणदीठ स्पंदनोनी अनुभूति अने तज्जनित संतृप्ति थाय छे. ते पेली खंडेर इमारत सामे ऊभा रहेवाथी लेश पण थती नथी.
आ बधा तर्कोनो सार एटलो छे के श्री यशोवाटिका ए ज उपाध्याय श्री यशोविजयजीनी अंतिम भूमि छे, अने खेतरनी खंडेरनी खंडेरवाळी धरती तेमनी अंतिम भूमि होवानी वायका ते अश्रद्धेय वायकामात्र ज लागे छे.
श्री हेमचन्द्राचार्यनी शिष्य परंपरा विशे
श्री भोगीलाल सांडेसराए "श्री हेमचन्द्राचार्य अने तेमनुं शिष्यमंडळ' विशे निबन्ध लखेल छे. पण तेमां तेमणे श्री हेमचन्द्राचार्यना प्रत्यक्ष शिष्यमण्डळनी ज जिकर करी छे. संवत १२९८मां हेमचन्द्राचार्यनी परंपरामां मेरुप्रभसूरि हता तेनुं प्रमाण शत्रुजय परना एक शिलालेखनी नकल स्वरूप हस्तप्रतोमा उपलब्ध छे. परंतु, ताजेतरमा एक प्रमाण एवं मळ्युं छे के जेना आधारे संवत १४९६मां पण तेमनी शिष्य परंपरा विद्यमान होय, एम कही शकाय. खंभातमां एक देरासरनो जीर्णोद्धार थतां तेनी दिवालमांथी मळी आवेली एक धातुप्रतिमा उपरना लेखमां कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरि पट्टे राजगुरुश्री हरिप्रभसूरि नाम वांचवा मळे छे. ते समग्र लेख आ प्रमाणे छे :
"संवत् १४९६ वर्षे शाके १३६२ प्रवर्तमाने वै.सु. ५ गुरौ मृगशीरनक्षत्रे सौम्ययोगे श्री सूर्योदयात् दिवा प्रथमप्रहर छायापद ८ छाया लग्ने वहमाने शुभे अद्येह श्रीस्तंभतीर्थे श्रीकुमररायविहारे श्रीभूमिगृहे श्री शत्रुजयावतारे श्रीयुगादिदेवरंगमण्डपे पूर्वज कारित श्री महावीरदेवमूर्ति श्री राजगच्छे कलिकालसर्वज्ञ प्रभु श्री हेमचन्द्रसूरिपट्टे श्री राजगुरु श्री हरिप्रभसूरि... (पछीना अक्षरो उकलता नथी). उपरनो लेख जोतां संवत १४९६मां जेम हेमचन्द्राचार्यनी शिष्यपरंपरा प्रवर्तमान होवानुं फलित थाय छे तेम ते समयमां खंभातमां कुमार विहार नामक राजा कुमारपाळे करावेल जिनचैत्य पण विद्यमान होवानुं निश्चित थाय छे.
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