________________
[18]
आ खंडेर अंगे जाणीता पुरातत्त्वशास्त्री डॉ. र. ना. महेतानो अभिप्राय लेतां तेमणे जणाव्यु के :
"डभोईनी दक्षिणे बावळनी झाडीमां एक त्रण गोखवाली इमारत छे. (मुख्यगोख २७ x २५ उंचाई २५; अन्य बे गोख १८ x २५ तथा १८ x २५). आ नानी इमारत लाखोटी इंटोनी बांधेली छे, अने तेमां टेबलइंटोनो जीर्णोद्धार थयेलो छे.
दरेक गोख उपर घणां जीर्ण थयेलां नक्कर अंगो छे. तेथी आ समग्र इमारत कोई धार्मिक इमारत होवानो संभव छे. ईटो परथी आ इमारत सत्तरमी सदी करतां खास जनी लागती नथी."
हवे आ इमारत केम अंतिम भूमि नथी, ते विषे केटलीक तर्को :
१. आ खंडेरमां त्रण गोख छे, अने कोई देवस्थानक- खंडेर होवार्नु, जोतांज, जणाई आवे छे. आम छतां ते जैन देवस्थानक होय तेवू कोई चिह्न नजरे पडतुं नथी. वळी यशोविजयजीनी भूमि होय तो एक गोख होय, तेने बदले त्रण गोख-ते पण साव जोडिया - केम ? ते पण तपासनो विषय गणाय.
२. आ जग्या, स्मशानभूमि नथी, ते स्वयंस्पष्ट छे. आनी सामे, यशोवाटिकानी जग्या स्पष्टपणे स्मशानस्थान छे. अने तत्कालीन प्रणालिका तो, विविध उदाहरणोना आधारे, एवी छे के साधु-संतोना पण अंतिम संस्कार तो स्मशान भूमिकामां के तेनी आसपासमां राजाए के समाजे फाळवेल खास जग्यामां ज थता; पण तेथी दूर स्वतंत्र कोई जग्यामां न थता. ऊना (शाहबाग)नी हीरविजयसूरिजी आदिनी समाधि आ प्रणालिकानुं श्रेष्ठ उदाहरण छे.
३. जूना जाणकारोने पूछतां जाणवा मळे छे तेम, वर्तमानमां यशोवाटिकामां ज्यां पादुका अने थूभ छे, ते पहेला बीजे हतां, अने काळांतरे, आ स्थाने लाव्या एवी कोई ज जाणकारी कोईने नथी. घरडाओना वखतथी आ ज स्थाने पादुका छे, तेम ज सहु जुए छे-कहे छे.
४. जो वास्तवमां बावळवाला खेतरमां ज अंतिम समाधि होत, तो थूभ-पादुका त्यां न बनावतां अहीं (यशोवाटिकामां) बनाववा माटे, के त्यां
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org