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अजारा तीर्थना चैत्यनी प्राचीनता सौराष्ट्रमां ऊना शहेर नजीक अजारा नामे तीर्थ जैनोमां खूब प्रसिद्ध छे. जैन पुराणो अनुसार तेनो सम्बन्ध रामायणना राजा दशरथना पिता राजा अजयपाल साथे छे. आ तीर्थमां १४मा सैकामां देरासर हतुं अने ते वखते आ क्षेत्र अजागृह तरीके ओळखातुं हतुं, तेवू वर्णन आपतुं एक प्रमाण ताजेतरमा प्राप्त थयेल छे. आ प्रमाण एटले अजाराना देरासरना परिसरमां खोदकाम करतां मळी आवेल पाषाण प्रतिमा उपरनो लेख. ते लेख आ प्रमाणे छे :
"सं. १३३३ वैशाख सुदि ३ शुक्रे प्रागवाट ज्ञातीय ठ.भीमसीह भार्यया ठ. वयजलदेव्या अजागृहे श्री पार्श्वनाथचैत्ये बिम्बमिदं कारितम् । प्रतिष्ठितं श्रीभा(व)देव सूरिभिः ।।" 'अजारा' नामनो संबंध, लोकोक्ति अनुसार अजयहरअजाहर-अजार एम प्रसिद्ध छ; अजयपालना रोगना निवारण साथे आ संबंध छे. परंतु उपरोक्त लेखमां अजारानो संस्कृत पर्याय 'अजागृह' आप्यो छे, ते जोतां अजागृह-अजाघर-अजाहर-अजार-एम गोठवणी वधु प्रतीतिकर लागे छे.
-शी.
१. अनुसन्धान-६ मां "मुनि प्रेमविजयजीनी टीप" (पृ. ७१-७५) प्रगट थयेल छे. तेमां कुल ४५ बोल छे, तेमां एक -छत्रीसमो -बोल छापवो रही गयो छे, ते आ प्रमाणे छे :
"जावजीव पाडिहारू वस्त्र अथवा कांबलो-कांबली वावरवा पचखाण; अनइ कारणइं पणि वावरवा पचखाण - ए बोल पांत्रीसमो ३५
माहरी निश्रा ग्रहस्त पासइ लिखावा पचखाण । ए छत्रीसमो बोल ३६ ।।
२. आ ज मुनि प्रेमविजयजीनो एक दस्तावेजी शिलालेख ताजेतरमां शत्रुजय तीर्थ-पर्वत (पालीताणा) उपर श्री आदीश्वर प्रभूनी ढूंकमां पुंडरीक गणधर नी जमणे आवेल चौमुखजीना देरासरना बहारना थांभला उपर वांचवा मल्यो, तेनी विगतो आ टीपना संदर्भमां नोंधपात्र जणाय छे. ते लेखनो पाठ आ प्रमाणे छे :
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