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________________ [95] एक वार जो दीदार देषु एक बेर जूं तसरिफ पाउं छेडो निर्मल साहूं दामन् साफ गिरफ्ते बे यती मोहन नामनो कहै छै प्रभुनै राहब मोहन गोयद् साहिब आज थकी मुझनै नरक थकी निवार अज मत् दोझष् रक्तै [ बे ] पू. अ० Jain Education International इति श्री पार्श्वनाथस्तवनं पारसीमध्ये | ३ सरस वदन सुखकारं सारं मुक्तावलि उरि हारं ; त्रिभुवनतारण तरण अतारं सो गायिजइ पासकुमारं ॥१॥ पास संखेश्वर परता पूरैं, समर्या धरणिंद होइ हजूरे; धण मणि-कंचण - कूर - कपूर, नामे पाम (स) उग्गइ सूरं ॥२॥ छंद मोतीदाम । भो उग्गंत सूरं नाम नूरं पास समरण पत्थियं लष लाल मोल कल्याण कुंडल लोल लहें कन इत्थियं; चमकंति चंपकवर्ण रामा कुवरि नाग नागेश्वरं, नव निद्धि आवें चडति दावे सामि नामि संखेश्वरं ||३|| महकंत महमह वास छुट्टे सुरभि वाक सुगंधियं, लहकंत लहलह चीर पइकण कोर रयणे बंधियं; रणकंति रमझम पाय नूपुर सरस वर युवति वाल्हेश्वरं नव निद्धि आवे चडति दावे सामि नामि संखेश्वरं ||४|| सुविनीत बाल रसाल वाणी देह कोमल सुंदरा, द्रव कोडि लष मीलहे मानव भत्ति वित्त सुमंदिरा; हीसंति हयवर मत्त गयवर सरस भोग भोगेश्वरं, नव० ॥५॥ व्याकरण वेद वखाण वामी विदुर जग सहू को कहे, विद्याविनोदी विविध हुन्नर पास समरण षिणे लहे, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520507
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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