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________________ [3] देही सनूरा साज पूरा परसिद्ध सउ राजेश्वरं, नव० ॥६॥ तुं अजब अकब्बर अलाही बरवय कर्दन तुं सही, महबूब बुजरक् मर्द तो - सा बगुय जोहवि मही; जसु जाइ ध्यावि नाम पावे तुज्झ दावे सरें भरं, न० ।। ७ ॥ दिलबुजां षुसीयाल् हाजर् फजर् पूजा जे रचे, . दीवान दुनिया श्री वत्स मद्दल सुद्ध नाटक नर नचे; चंपेल वेल जासूल माफीक्, नेफबषत् सेवेश्वरं, न० ॥८॥ हलुवा हालची सेव सक्कर खुब खर्दन ज्या मिले, जर्दै जि पाग सपेद वागा जई पटका झलहले; खुसबो य अंगे सदो पहिने सबल तेज सुरेश्वरं न० ॥९।। सो इलम् कबूल कतेव काजी नाम तेरा जस रखा, मियां मुसाफर सईद काफर राहु-रयनी तुं सखा; हररोज खजमतिगार तेरा बखत वड तापेश्वरं, न० ॥१०॥ तुं ही ज मादर पिदर मेरा बिन् बिनादर् तु धरा, अजीब बंदा षलक तेरा भाग मेरा अब् खरा; दीदार साहिब चसम-रोसन् नमति साहि दिलेश्वरं । न० ॥११॥ गुन् अलेला बक्स अदिलेजवां गैर ज कछु बक्या तर्दोजक् या तसमीन् कामन् पास दरगह में तक्या; कयुं बषन् दारिद् वफे तिसका ध्यावता ध्यावेश्वरं , न० ॥१२।। कलश । सामि नामि संपति कित्ति जसु वाधे सधर, सामि नामि संपति मति निर्मल मुख मधुर, सामि नामि संपति रति रामति लीला वर, सामि नामि संपत्ति फतिदरसन (?) समतर, वर रिद्धि राज साहब थापण सधर, सुरनर जिनसेवा अकल श्री पास आस, नय प्रमोद भणे पावे मन वंछित सफल || १३ इति श्री शंखेश्वरपार्श्वछंद ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520507
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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