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________________ [58] - जाणु पहुवी - सुह - कुच्छ कंति-कुल- पिच्छल निम्मल - रयण- समाणु । भूदेव - देव- वसुभूइ - सुनंदणु चउदस - विज्जाजो जन्नु करंतर पिक्खि तुरंतउ गयणंगणि सुरसत्थु । सव्वन्नवाइ-रोसारुणु चल्लिउभडु उप्पाडवि हत्थु || विम्हियमणु समवसरण पडिबोहिय मिलिय- सुरासुर - इंदि । सो पंचसयहं सउं दिक्खिउ गोयमु गणहरु वीरजिणिदि । जो कंचण-कमल-विमल - कोमल - तणु सत्त - हत्थ- सुपमा तिहुयण - जण - वयण - नयण-मण-म‍ - मोहण - लवणिम- रूव - निहाणु ॥ जिणि बिहुं उपवासिहिं नितु पारंतइ लद्धिय - लबधि अपार । सो अनभूति-बंध गुरुगोयमु मनि समरउं सविचार जो कामकुंभ - सुरधेणु - सुदुम-सुरमणि दाणि पहाणु । जिणि अप्प - कन्हइ अणहूंतउं अप्पिउ घण-जण - केवल - नाणु ॥ जिणि निय-गुरु- निवड - नेहि अवगन्निय केवल - सिरि-वर-नारि । तसु गोयमसामि - समउ गुरुभत्तिर्हि कवणु भणउं संसारि जो नियबलि जिण चउवीसइ वंदइ चरमसरीरी इत्थ । इय जिणदेसण सुरवयणि सुणेविणु फलु अट्ठावय-तित्थ ॥ आलंबवि सहसकिरण - कर- तंतुय चडियउ गिरि कैलास । अच्चभुय - चरिउ रहिउ सो गणहरु इक्क रयणि तिणि वासि भरसर- चक्काहिव - निम्मिय निय-निय - वन्न - पमाणि । जिण वंदिय वलतइ खीर- खंड - घिय - भोयणु इच्छ - पमाणि ॥ अंगुर ठविय पनरसइ तावस कारिय इक्कइं ठामि । अखीण- महाणसि - लद्धि-समिद्धउ जयउ सु गोयमसामि परवाइय-मयगल - माण- मडप्फर- मोडण - केसरिराउ । सिरि- रे-वायभूइ - गणहारि-सहोयरु सचराचरि विक्खाउ || जो केवलकज्जि करंतर आडउ गुरुअग्गइ जिम बाल । तिणि कत्तिय - मास - अमावसि परणीय केवल लच्छि विसाल Jain Education International For Private & Personal Use Only ॥१४॥ ॥१५॥ ॥१६॥ ॥१७॥ ॥१८॥ ॥१९॥ 112011 www.jainelibrary.org
SR No.520506
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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