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व्याकरण-लक्खण-छंद-गुण अहिंनाण-केवल नांणयं ॥ रोहिणीअ-वर आसोअ-पुण्णिम-मयंक जिम मुह सोहइए वक्खांणि वांणि सुदेसणा-रसि सविअ-जण-मण मोहइए । निग्गोअ-नरय-विआर चउविहि धंम्म-भेय सवि जांणइए ॥ मय-गव्व-कोहकसाय-लोह रिआसना नविं आणइए जय मुहि हुई लख जीह जीह जीह लख वागेसरि वागेसरि सवि मणह भावि जस, दिइं तूसी वर । सागर कोडाकोडि जगिहि जगि जे नर जीवइ नवि आहार निहार जास नर नींद्र न आवइ । सिद्ध जिम पउम-आसणि रहइ केवलि लबधि स ऊजमिहि । इम भणइ वनु सवि मेररयण-गुण सोई नर वंण्णवि नवि सकहि जय मुणिवर मेररयण तूसई
तु सवि कला लहुं लीला सहि . भाषा, शैली वगेरेनुं स्वरुप जोतां १५मी सदीनो अंतभाग रचनासमय तरीके लई शकाय. आ बालावबोधनो कृष्णजन्मथी कंसवध सुधीनो खंड (पत्र १०ख थी १५ख) में संपादित करेल कीकु वसहीकृत 'कृष्णबालचरित्र' (१९९२)मां परिशिष्ट रूपे (पृ. ६२) प्रकाशित कर्यो छे.
ओं नमः श्री नेमिनाथाय । गिरनार-गिरिशृंगे नमः(?नत्वा) श्रीनेमिनं जिनम् । स्नानं गजपतेः कुंडे कृत्वा पापः प्रमुच्यते ॥
(कुरुवंश) कासमीर-पुर-मंडणी पणमीअ सरसइ-पाउ । गुण गाएवा पांडु-सुअ मझ मनि लागु ढाउ । पहिलुं अवझाउर-नयर आदिनाह तिह राउ । मुरदेवि-नंदण नाभि-सुअ पणमइं सुर नर पाउ ॥
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