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________________ परमेसरिम-सुह मेल्हि करि अंगीकरिउं चारित्र । राजि ठवीॐ धरहेस भड अनु अनुक्रमि सु पुत्र ॥ विहिचीअ दिन्हा देस सु जेह जिसा पोसाइ । भरह-खंड नामिइं भरह तिहुयणि इम पभणाइ ॥ कुरुराजा कुरुखित्ति हूअ मोटउ मही-नरिंदु । सर्गि मृत्यि पायालि पुरि जाणइं इंद-फुणिंद ॥ तिणि संतांनि अनेक निव अवतरीआ कुरु-देसि । हत्थि-नामि हथिणाउरह सुरवर-तणइ निवेसि ॥ संति कुंथु अरनाथ जिण हथिणाउरि अवतार । धम्म-चक्कवय चक्कवइ जिण-पय नितु जोहार ॥ (शांतनु-वृत्तांत) वलि तिहां राजा सोम हूअ सोम-वंस सुपमाण । अतिबल पूठिइं अवतरिउ स्यांतन-राउ सुजाण ॥ हथिनाउरि वलि अवतरित सबल स्यांतन-राउ । सोम-वंश-कुल-मंडणु अरि-सिरि रोपइ पाउ ॥ धम्मवंत धुरि तेह तु निम्मल-कुलि निकलंक । पूअ-भव-पसाउलइ थिउ पय पय सकलंक ॥ वद्यण विलागुं पापमइ नितु आहेडइ जाइ । निरपराध मृग मारतु कांणि किसी न कराइ । धम्मि धांमइ धूसट पडइ । विरलु जाइ कि वार । -ण दोइ लिग्नि लगाडतु पणि किवार दस-बार ॥ एक दिवस उत्तावतुं पल्लांणीउ पवंग । गयु महावनि इक्कलु. पिक्खवि जूथ कुरंग ॥ भुइं छांडी मृगली मृगिई बलवइ चूकु बांण ॥ वल्लीअ-वणि मृगलां गयां . विहि-वस-तणइ विनाणि । विलख-वयण राजा हूउ गयु आगेरइ ठाणि ॥ पिक्खवि वण रुलीआमणुं नंदण-वण-समतुल्ल । विलसई फलि फलिआ तरु महमहंति अइ-फुल्ल ॥ [71] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520504
Book TitleAnusandhan 1995 00 SrNo 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages96
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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