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________________ मेरुरत्न तणां पद-कमल तूसई तु कुरव-पांडव-तणा युद्ध-तणी लव-लेशमात्र संखेपि वर्णना कीजइ । (४७) (३) वागुवांणि पय लागी वीन, जोडि बेउ नांमी सिरु नमुं । देहि माइ मझ वांणी निरमली, कवित एह करिवा मझ मनि रुली ॥ (४७) (४) मेरुरत्न-गुरु-ने पगि लागुं, कवित एह करिवा मति मागुं । झूझ-नी परि जिसी हुं जांणुं, माहरी गति-लगइ सु वखांणुं ॥ (४७) (५) उत्तरकुमार विजय करीने विराटनगरमां पाछो आवे छे त्यारे तेना पिता तेना शौर्यनी प्रशंसा करे छे. तेना प्रत्युत्तरमा; उत्तर जणावे छे के ए पराक्रम बृहन्नलानु छे. ते पछी पत्र ७०ना पाछळना पृष्ठ उपर लहियाए आपेला क्रमांक ४१ पछी नीचे प्रमाणे कर्ताविषयक नोंध छ : छंद घटा सरसति-सामिणि माइ पाय-पणांम भाविहि किज्जइए । मागेसु निरमल वांणि अविरल तीह लाहू लिज्जइए । जइ किमइ तूसइ माइ सरसइ ऊपजइ तिसु मइ घणी नरवर-सु-पांडु-नरिंद-नंदण-गुण-सुवन्नण रढ घणी ॥ चंद्रगछ-राउ स तवह पक्खह नामि कुमइ पणासइए । सांमली सरसइ विरुदु वहइ वांणि सुमइ उल्हासइए। पउम जिम वयण-विकास अणुदिणु अहिणवा गुरु गोअमं गुण भूरि सिरि जयचंद-सूरि गुरु जोडि कर नितु पय नमुं तस सीस मांमट-साह-नंदण कवण जगि तस उप्पमं । सीलवइ-नींनादेवि-उरि सरि रायहंस अणोवमं । सोभाग-सुंदर जगह मणहर वाणि-अमीअ सु जलहरं गुणि सीलि निम्मल कंति-जलहर मेररयण-मुणीसरं (पाठां० मुणिवरं) वर विणय लावण कला बुहुतरि सयल सुय परमाणयं । एगार अंग सु चऊद पूरव तत्त नवह वखाणयं वादीअ-विहंडण-मांण विज्जा-सयल-परम-निहांणयं [69] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520504
Book TitleAnusandhan 1995 00 SrNo 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages96
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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