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________________ रसप्रद छे के, 'दोरडी' शब्द परथी बनावी काढेलो संस्कृत 'द्विरटिका' (=दोरडी) जंभलदत्तनी 'वेतालपंचविंशतिका'मां वपरायो छे. वृक्ष उपर लटकता शबनी 'द्विरटिका' कापीने विक्रमराजा तेने नीचे धरती पर नाखे छे. ए कृतिना संपादक डो. एमेनोने आ गुजराती 'दोरडी' ए शब्दना मूळमां छे तेनी गंध पण क्यांथी होय ? दो नुं संस्कृत रूपं द्वि अने बाकी रहेल रडीनुं कर्यु संस्कृत रटिका ! प्रा. तोडहिआ 'एक प्रकारनो ढोल' १. उद्योतनसूरीए 'कुवलयमाला' (इ.स. ७७९)मां आपेल अनेक रमणीय, वास्तविक, तादृश्य शब्दचित्रोमां एक स्थळे जे सुंदर संध्यासमयना व्यवहारनुं वर्णन करेलुं छे (पृ. ८२-८३) तेमां विविध देवस्थानोमां थई रहेली प्रवृत्तिनी विगतो आपेली छे. तेना समयना भिन्नमाल जेवा नगरोना जीवननो आमां वास्तविक आधार होय एम मानी शकीए. ___ यज्ञमंडपोमां मंत्रोच्चार साथे तल, घी, अने समिध होमवानो ततडाट, ब्राह्मणशाळामां वेदपाठनो गंभीर घोष, शिवालयोमां मनहर आक्षिप्तिकानुं गान, धार्मिको (व्रती संन्यासीओ)ना मठोमां डमरुनाद, कापालिकोना धर्मस्थानमा घंय अने डमरुनुं वादन, शेरीओना चोकना शिवमंदिरोमां 'तोडहिआ' वाद्योनो घोंघाट, अग्रहारोमां 'भगवद्गीता'नुं पठन, जिनालयोमा गुणमहिमाना स्तोत्रोच्चार, बुद्धविहारोमां करुणापूर्ण वचनोना उद्गार, चंडीमंदिरोमा प्रचंड घंटानाद, कार्तिकेयना देवळोमां मोर, कूकडा, चकलांनो कलबलाट, उन्नत मृदंगवादन साथे सुंदरीओथी गवाता मधुर गीत-आवा प्रकारना ध्वनिओ संभळाता हता. ___ (आक्षिप्तिका विशेनी नोंधमां में 'कुवलयमाला'ना आ संदर्भनो उपयोग कर्यो छे. जुओ Indological Studies, पृ. ८२). २. उपर्युक्त वर्णनमां 'तोडहियां-पुक्करियई' (अथवा पाठांतरे 'चुक्करियई') एवो ज़े प्रयोग छे, तेमां तोडहियानो एक वाद्य तरीके निर्देश छे. 'आचाराङ्गसूत्र' परनी शीलांकाचार्यनी वृत्तिमां 'आचाराङ्ग मां एक स्थाने प्रयुक्त (सागरानन्दसूरिसंपादन, पृ. २७५, सू. १६८; जैन आगम ग्रन्थमाला वाळा संपादनमां पृ. २४१, सू. ६७२) भिक्षुकने जे शब्दध्वनिओथी दूर रहेवा कां छे, तेमां ते [44] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520504
Book TitleAnusandhan 1995 00 SrNo 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages96
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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