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ग्रंथमां जैन मूर्तिचित्रो - ए जराक अचंबो पमाडे तेवी वात जणाय. परंतु अन्य कोई हिंदु के बौद्ध देवमूर्तिने बदले जैन प्रतिमानी पसंदगी थई छे, ते नि:संदेह स्पष्ट छे.
तूतीनामानी ५२ पैकी त्रीजी तथा ३५मी कथाओ साथे आ चित्रो जोडाएला छे. आ कथाओनो सार क्रमशः आवो छ :
(१) कथा त्रीजी : नायिका खोजस्ताने तूती(पोपट) कथा कहे छे : एक सोनी अने एक सुथार - बन्ने मित्रो, धन कमावाने परदेश गया. त्यां एक नगरमां जई वस्या, पण कोई मेळ न पडतां मंदिरे जतां थई ढोंगी-परम भक्त बनी रह्या. सौने तेमनी भक्ति पसंद आवतां मंदिर ते बेने सोंपी दईने लोको बेपरवा बन्या. मंदिरमा प्रतिमा सोनानी हती. दागीना तो होय ज. प्रजानो पूर्ण विश्वास जाम्या पछी बन्ने एक दहाडो राजपुरुषो पासे - कचेरीमां गया, अने कह्यु के 'रात्रे भगवाने स्वप्नमां कडं छे के अहींना लोकोए अमारी भक्ति छोडी होवाथी अमे हवे बीजे जतां रहीशुं.' राजपुरुषोए भगवानने मनाववा कडं अने ढंढेरो पीयव्यो. बधुं व्यर्थ ! लाग जोईने पेला बेए एक रात्रे सोनानी मूर्तिओ तथा घरेणां उपाड्यां, अने जंगलमां दाटी आव्या. पछी दरबारमा दयामणा चहेरे रजूआत करी के 'भगवान विना अमे तरफडीए छीए. अमाराथी हवे अहीं नहि रहेवाय. ज्यां भगवान मळशे त्यां जई रहीशुं.' अने ते बे बधुं लई घेर जतां रह्या. ___वार्ता तो हजी घणी लांबी छे, अने कुरानने टांकीने मूर्तिपूजानो निषेध/ विरोध पण दर्शाव्यो छे. परंतु चित्रनो संबंध आ प्रसंग पूरतो ज छे, तेथी चित्र- वर्णन कर प्रासंगिक गणाशे. ___ ग्रंथना पृ. २८ पछी Plate No. 3 चित्रमा उपरना भागे पर्शियन अने मुघल चित्रशैलीमां होय छे तेवू मंदिरनुं दृश्य छे, तेमां मुगटबद्ध बे जिनप्रतिमा समांतरे, पद्मासने, सोनानी शाहीथी आलेखेली छे. चित्रना नीचेना भागमां सिंहासन पर राजपुरुष बेठेलो छे. छत्र-चामर धराई रह्यां छे; सामे सोनी तथा सुथार ऊभा छे, बन्ने पूजानां कपडांमां छे; एकना हाथमां बटवो अने बीजाना हाथमां माळा छे.
(नोंध : वर्षों पूर्वे प्रायः सस्ता साहित्यमां 'कौतुकमाला' नामे पुस्तक
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