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________________ अलेकिया (गिरनारी) बावा डोकमां पहेरे छे ते काळो दोरो के तेनी आंटी', तथा (२) 'चकमकथी देवता पाडवानी दोरी' एवा अर्थमां आपेला छे. हिंदी सेलीनो अर्थ पण उपर (१) प्रमाणे छे. कोशमां एवी दोरी गळामां पहेराती के माथा पर लपेटाती होवानुं जणाव्युं छे. उपर्युक्त गुजराती-हिंदी शब्दोना मूळमां प्राकृत सेल्लि छे. सेल्लिना मूळ तरीके कोई संस्कृत शब्द होय एवं लागतुं नथी. शेलायु नो संबंध पण सेल्लि साथे होवानुं देखीतुं छे, पण तेमां कयो प्रत्यय छे ते अस्पष्ट छे. ७. नंद गुजरातीमां नंद अटले 'वाणियो', नंदकळा एटले ‘वाणियाविद्या'. एनी चर्चा करतां में 'फा.गु.स. त्रैमासिक' मां (जान्यु-मार्च, १९८९, पृ.५४) भीमकृत सदयवत्सवीरप्रबंध' (इ.स. १४०० आसपास)मांथी एक प्रयोग नोंध्यो हतो. नीचे बीजो एक प्रयोग, पंदरमी शताब्दीनो, अने संस्कृत भाषानो, नोधुं छु. लोकभाषाना प्रयोगने आधारे ए थयो होवानो संभव खरो. अमात्य पेथडना चरित्रने लगती रत्नमंडनगणिनी रचना 'सुकृतसागर' मां नीचेनुं पद्य उद्धृत थयुं छे (प्रद्युम्नविजयगणि कृत) गुजराती अनुवाद, १९८०, पृ. १०, मूळ पद्य पृ. २०७ उपर): देशाधीशो ग्राममेकं ददाति, ग्रामाधीशः क्षेत्रमेकं ददाति । क्षेत्राधीशः प्रस्थमेकं प्रदत्ते, नन्दस्तुष्टो हस्त-ताली ददाति ॥ 'देशाधिपति प्रसन्न थाय तो गाम आपे; ग्रामाधिपति प्रसन्न थाय तो एक खेतर आपे; क्षेत्राधिपति प्रसन्न थाय तो पाली अनाज आप; नंद (वाणियो) प्रसन्न थाय तो ताळी आपे'. आ ज पद्य 'प्रबन्धचिन्तामणि'नी एक हस्तप्रतमां मळे छे. तेमां उत्तरार्ध नीचे प्रमाणे छे : क्षेत्राधीशः शिम्बिकाः संप्रदत्ते, सार्वस्तुष्टः संपदं स्वां ददाति ॥ (पृ. ३७, पद्य ५६) __ 'क्षेत्राधिपति प्रसन्न थाय तो शींगो आपे. सर्वज्ञ प्रसन्न थाय तो पोतानी संपत्ति (ओटले के मोक्ष) आपे.' सार्व शब्द तीर्थंकरवाचक शब्द तरीके ‘अभिधानचिन्तामणि' मां आप्यो छ (पद्य २५). अन्यत्र तेनो प्रयोग मारा ध्यानमां नथी आव्यो. ए दृष्टि ए प्रचिं. वाळो पाठ नोंधपात्र छे. मूळ पद्य रत्नमंडनगणि वाळु के प्रचिं. वाळु तेनो निर्णय कई रीते करवो ? 'सुकृतसागर' वाळु मूळ सामान्य सुभाषित होय अने तीर्थंकरनो महिमा दर्शाववा तेमा परिवर्तन करायु होय एवी संभावना विचारणीय छे. . पूर्वप्रचलित कोईक सुभाषित के पद्य प्रसंग फेरे के संदर्भफेरे थोडोक फेरफार करीने [26] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520503
Book TitleAnusandhan 1994 00 SrNo 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1994
Total Pages54
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size3 MB
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