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________________ शकुं हुं' एम अर्थ बेसार्यो छे, अने नोंधमां 'देशीनाममाला' तथा 'बृहत्कथाकोश 'नो हवालो आप्यो छे. (पृ. ९९ ). J वीरकृत अपभ्रंश 'जंबूसामिचरिउ 'मां (इ.स. १०२०) सेनानी कूचना वर्णनमां कह्युं छे के क्यांक पदातिओनी टुकडीओ हाथमां कुंत, असि अने कडिसल्ल धरीने धसमसती खेलती जई रही छे (कुंतासि-कडिसल्ल कर- तक्कडं, धंत-खेल्लंत - पाइक-धड- संकर्ड || १, १५, ५). अहीं पाठांतरो कड़ितल्ल अने थड़ छे ते समुचित होईने पसंद करवाने बदले संपादक विमलप्रकाश जैने कङिसल्ल अने घड ए उतरता पाठ पसंद कर्या छे, अने कडिसल्लनो अर्थ 'कटिशूल’ अटकळथी कर्यो छे. ५. चक्कोडा देना. ३-२मां चक्कोडा शब्द 'अग्निभेद, अग्निनो एक प्रकार' एवा अर्थ साथे आयो छे. उदाहरणगाथामां विरहचक्कोडा एवो प्रयोग 'विरहाग्नि'ना अर्थमा कर्यो छे. प्राकृत कोशोमां आ शब्दनो साहित्यमांथी बीजो कोई प्रयोग नोंध्यो नथी. भोजकृत 'शृंगारप्रकाश' मां उद्धृत एक अपभ्रंश दृष्टांतमां तेनो प्रयोग मळे छे. भ्रष्ट रूपमां आपेल ते दोहो शुद्ध रूपे नीचे प्रमाणे छे (कुलकर्णीकृत Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics, ग्रंथ १, परशिष्ट १, पृ. १३, क्रमांक २५). जं हि वाविहि कूवि सरि, पल्ललि तल्लि तलाइ | चंदह कय चक्कोडिआ, केण हआसें माइ || 'हे सखी, क्या दुरात्माए धरामां, वावमां, कूवामां, सरोवरमां, खाबोचियामां, तळावडीमां, तळावमां चंद्ररूपी तापणां सळगाव्यां छे ?' ६. सेल्लि १. 'उत्तराध्ययन सूत्र' ना २७मा अध्ययनमां अविनीत, कुशिष्यने माटे गळिया के तोफानी बळदनुं उपमान योज्युं छे, अने गळिया बळदना वर्तननो वास्तविक चितार आप्यो छे. सातमा लोकमां कह्युं छे के दुष्ट बळद (एने माटे अहीं छित्राल शब्द वापर्यो छे, जे अन्यथा 'लंपट पुरुष', 'जार'ना अर्थमां वपरायेलो छे) सिल्लिने तोडी नाखे छे, ए दुर्दान्त होईने धूंसरी पण भांगी नाखे छे, अने सीसकारतां गाडुं मूकीने भागी जाय छे. अहीं सिल्लीनो अर्थ टीकाकारे 'रज्जु, दोरडुं' कर्यो छे. एटले के आ संदर्भमा 'जोतरुं'. सिल्लिने बदले सेल्लि एवं पण पाठांतर छे. २. 'सार्थ गुजराती जोडणीकोश' मां अने 'बृहद् गुजराती कोश मां शेलो, सेलो, शेलायुं (आ बृगुको. मां नथी आप्यो ) ए शब्दो 'दोहती वेळा गायभेंस पाछलो पग न उलाळे ते माटे पाछला पगे ढींचण पासे बंधातुं दोरडुं' एवा अर्थमां नोंध्या छे. ते उपरांत शेली, सेली ए शब्दो (१) 'कबीरपंथी साधु तथा फकीरो ( जोको.) के [ 25 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520503
Book TitleAnusandhan 1994 00 SrNo 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1994
Total Pages54
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size3 MB
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