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कोईक उत्तरकालीन प्रसंग के संदर्भमां वापरवानी परंपरा हती. आनुं बीजं एक उदाहरण अहीं टांकुं छु.
_ 'प्रबंधचिंतामणि'ना भोज-भीम-प्रबंधमां आपेला शीता-पंडिता - प्रबंधमां भोज अने शीताना पद्य पूर्ति के समस्यापूर्तिना विनोद ना जे प्रसंगो आप्या छे, तेमां भोजे जेनो पूर्वार्ध कह्यो अने शीताए चतुराई भर्यो उत्तरार्ध कह्यो ते पद्य नीचे प्रमाणे छ :
सुरताय नमः तस्मै, जगदानंददायिने ।
आनुषंगि फलं यत्र, भोजराज भवादृशाः ॥ (पृ. ४३, पद्य १०८) "प्रबंधकोश'ना वस्तुपाल प्रबंधमां मल्लवादीसूरि अने वस्तुपालनो जे प्रसंग आप्यो छे तेमा सूरिने नीचे आपेला श्लोकनो मात्र पूर्वार्ध बोलता सांभळी, तेमना प्रत्ये वस्तुपालने थयेला विरक्तभावनुं निवारण सूरिए ए पद्यना उत्तरार्धथी कर्यानो वृत्तांत आप्यो छे..
अस्मिन्नसारे संसारे, सारं सारंगलोचना।
यत् कुक्षि-प्रभवा एते वस्तुपाल भवादृशाः । आ श्लोकमां स्पष्टपणे उपर्युक्त भोज - सीतानी उक्ति-प्रयुक्तिनो पडघो छे.
८ युगंधरी प्रतिष्ठानना राजवी सातवाहन-हालनु व्यक्तित्व एटलुं प्रतिभाशाळी अने बहुमुखी हतुं के विक्रमादित्यनी जेम, भारतनी पंदर सो वरसथी पण वधु लांबी परंपरामां ते पुराणकथानुं पात्र बनी गयो. अनेक काव्यो, कथाआ, दंतकथाओ तेने नामे सतत रचाती रही छे. जैनोना प्रबंधसाहित्यमां पण विविधरूपे सातवाहन - प्रबंध मळे छे. राजशेखरसूरिना 'प्रबंधकोश'ना (ई.स. १३४९) 'सातवाहनप्रबंध'मां अनेक रसिक दंतकथाओ आपी छे. तेमां एक कथा आ प्रमाणे छे : वाणियाने लाकडानो भारो हमेशां वेची जतो कठियारो एक दिवस न देखातां वाणियाए तेनी बहेनने ते न आव्याचं कारण पूछ्युं. बहेने का, 'मारो भाई तो अत्यारे देवोनी संगतमां छे.' वाणियाए पूछ्यु, ‘एटले ?' बहेने का, 'कांडे मीढळ बंधाय ते पछीना विवाहना चार दिवस वरने पोते देव जेवो वैभव माणतो होय एवू लागे छे, केम के अनेक उत्सवोमां ते महालतो होय छे.' आवू सांभळीने राजाने थयुं, 'मारे आवो देवोनो वैभव शं काम न भोगववो ? हुं चार चार दिवसे विवाहोत्सव करीश'. ते तो प्रजाजनोमा जे जे रूपाळी तरुण कन्याने जोतो के तेना विशे सांभळतो तेने तेने परणीने उत्सवो माणवा लाग्यो. आवं केटलोक समय चाल्युं, एटले लोकोने थयुं, 'आपणो वंश केम रहेशे ? बधी कन्याओने राजा परणी जाय छे'. ए प्रमाणे लोको दुःखी थई रह्या हता, त्यारे विवाहवाटिका नामना गाममां रहेता एक ब्राह्मणे पीठजादेवीनी आराधना करीने विनंती करी, 'हे भगवती, अमारा पुत्रोनो विवाह कई रीते करवो ?' देवीए का, 'हे ब्राह्मण, हूं कन्यारूपे तारा घरे अवतरीश. राजा ज्यारे मारी मागणी करे त्यारे भने तेने देवी. बाकीनुं हुं संभाळी लईश.' ए प्रमाणे थतां,
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