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________________ म १२] જ્ઞાનવિલાસ કે રચયિતા [ ५७५ ] गत कार्तिक शुक्ल पक्ष में देसाई महोदय साहित्य निरीक्षणार्थ हमारे यहां बीकानेर पधारे तब वे उक्त चारित्रनंदिकृत ग्रन्थका आदि-अंत नकल करके लाये, इससे पूर्व हमारी नोंध में चारित्रनन्दिकृत दो और पूजाओं का उल्लेख था। देसाई महोदय के साथ कुशलचन्द्रसूरि पुस्तकालय का निरीक्षण करते हुए चारित्रनन्दिकृत पंचकल्याणक पूजा और मिली, उसके आधार से चारित्रनन्दि का वंशवृक्ष इस प्रकार बनता है जिनराजसरि (द्वितीय सं. १६७५-१६९९ स्वर्ग) उपाध्याय पद्मविजय वाचक पमहर्ष वाचक सुखनन्दन बाचक कनकसागर . उपाध्याय महिमतिलक . उपाध्याय लब्धिकुमार → महोपाध्याय नवनिधिउदय भावनन्दि महोपाध्याय चारित्रनंदि कल्याणचारित्र प्रेमचारित्र हमारे ख्याल से ज्ञानानन्द उपनाम है। जिस प्रकार आनन्दघनजी का लाभानन्दजी था और चिदानन्दजी का कपूरचंदजी उसी प्रकार ज्ञाना. नन्दजी का नाम भी उपर्युक्त कल्याणचारित्र या प्रेमचारित्र इन दोनों में मे एक था। ___ श्री ज्ञानानन्दजी उपर्युक्त वंशोक्त परम्परा के ही नवनिधिउदयजी के शिष्य थे यह बात ज्ञानविलास और संयमतरंग के निम्नोक्त पदों की अन्तिम Jain EducatiJTTAT311 ETE For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520001
Book TitleJain Journal 1938 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Bhawan Publication
PublisherJain Bhawan Publication
Publication Year1938
Total Pages646
LanguageEnglish
ClassificationMagazine, India_Jain Journal, & India
File Size32 MB
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