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શ્રી જન સત્ય પ્રકાશ
[ વર્ષ ૪
धे १८९८ तक जीवित थे पर उनके रचित प्रस्तुत बालावबोध का समय सं. १८६६ का ही है अतः प्रेमीजी ने उसीके आधार से इनका समय लिखा है यह स्पष्ट है । साथ ही साथ उनके अहमदाबाद के स्मशान में रहने का उल्लेख तो ठीक है, पर स्थानका नाम बीकानेर होना चाहिए, क्यों कि ज्ञानसारजी ने बीकानेर के स्मशानों में ही बहुत वर्षों तक या अपने जीवनका बहुतसा अन्तिम समय व्यतीत किया है। श्रीमद् बुद्धिसागर सूरिजी ने अपने 'आनन्दघन पद संग्रह भावार्थ' नामक ग्रंथ के पृष्ठ १५९ में यही बात सूचित की है कि “ श्रीमद् ज्ञानसा(ग)रजी पण बीकानेरना स्मशान पासे झुपडीमां साधुना वेषे रहेता हता” और यह है भी ठीक ।
हमने श्रीमद ज्ञानसारजी रचित विशाल साहित्य का परिपूर्ण अन्वेषण किया है और उनके जीवन संबंधी बहुत सामग्री संग्रहीत की है, जिसे स्वतंत्र संग्रह के रूपमें प्रकाशित करने का विचार है। आप एक असाधारण प्रतिभाशाली कवि, अनुभवी व आध्यात्मिक मस्त योगीराज थे। बीकानेर, जैसलमेर, जयपुर, आदि के नरेश भी आपकी बडी श्रद्धा करते थे।
जबसे मैंने प्रेमीजी के उक्त उल्लेख को पढा और उक्त संग्रहग्रन्थ का अवलोकन किया तभी से मैंने पहेले तो निर्णय कर लिया था कि इन पदों के वास्तविक रचयिता ज्ञानसारजी नहीं पर ज्ञानानन्दजी हैं और वे दोनों भिन्न भिन्न अध्यात्मोपासक योगी कवि है। पर ज्ञाननन्दजी कौन थे ? इस विषय में निश्चितरूप से कहने का कोई साधन मेरे पास नहीं था। रा. रा. मोहनलालजी दलीचंदजो देसाई महोदयने, जब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि हमने श्रीमद् ज्ञानसारजी के संबन्ध में गंभीर अन्वेषण किया है तब, उन्होंने भी हमसे पूछा कि-ज्ञानविलास आदि के कर्ता कौन हैं ? तब भी मैंने इतना तो स्पष्ट लिख दिया कि इनके कर्ता ज्ञानसार तो नहीं हैं, और जैसा कि पदों के अन्त में आता है , ज्ञानानन्दजी ही हैं। इनके गुरुका नाम भी पदों के अन्त्य पदानुसार चारित्रनिधि या चारित्रनंदि है यह भी हमारी धारणा थी, लेकिन तथाविध साधनों के अभाव से इसका अंतिम निर्णय नहीं हो सका।
इस बार जब मैं बम्बई आदि स्थानों में यात्रार्थ गया तो उपाध्याय सुखसागरजी के शिष्योंसे यह ज्ञात हुआ कि इनके गुरु चारित्रनन्दिकृत एक ग्रन्थ उन्हें उपलब्ध हुआ है। संभवतः मैंने उस ग्रन्थ को देखा भी था, पर समयाभाव से उसकी प्रशस्ति नोट नहीं कर सका। पर उस स्मृति के आधार पर मैंने देसाई महोदय को यह सूचना दे दी कि वे खरतर गच्छ के हैं और जिनरंगसूरि शाखा के आज्ञानुवर्ती थे। इन सब बातोंका सप्रमाण विशेष परिचय इसी लेख में दिया जा रहा है। www.jainelibrary.org
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