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________________ Jain Education International २५ १-२] ચમતે સિતારે [ ४७ ] कुछ विद्वानोंने मैचपुरी के शिलास से यह अनुमान लगाया है कि उसने ६७ वर्ष की आयु तक अवश्य राज्य किया होगा । महाराजा खारवेल का कुछ परिचय हेमवंत स्थविरावली से भी मिला है, यह विक्रम की दूसरी शताब्दी के विख्यात आचार्यश्री स्कंदरि के शिष्य आचार्यश्री हेमवंतने संक्षेप में एक स्थविरा लिखी थी, उसमें मगधका राजा नन्द और कलिंग का राजा मिराजा लिखा है। श्रीयुत काशीप्रसादजी जायसवाल ने भी स्वीकृत किया है कि महाराजा चारवेल ने विजय के बाद साधु-सम्मेलन किया। चारवेल को महाविजयी, खेमराजा, भिक्षुराजा, धर्मराजा उपाधियां जैन संपकी ओर से मिली। इन धार्मिक कार्यों के अतिरिक्त महाराजा खारवेल ने प्रजा के हित के लिये भी अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किये । कलिङ्ग देश में पानी का बड़ा कष्ट था, उसके लिये प्रचुर धनव्यय कर के भी मगध से नहर लाई गई, और प्रजा का कष्ट निवारण किया । महाराजा खारवेल जैनधर्म का अनन्य भक्त था, परन्तु फिर भी उस का हृदय विशाल था, उसने किसी भी धर्मवाले को कोई कर नहीं पहुंचाया। शिलालेख की १७ वीं पति में लिखा है कि महाराजा वारवेल सब मर्तों का समान रूप से सन्मान करता था । महाराजा का राजसूय यज्ञ करना और वैदिक रीत्यनुसार राज्यभिषेक कराना उदारता के ज्वलन्त प्रमाण हैं । उन्होंने अपने राज्य में पौर और जानपद ( आजकल की तरह म्युनिसीपलेटी और डिस्ट्रिक्ट बोर्ड) कायम किये हुए थे । प्रज्ञा के कष्ट निवारणार्थ कुर्वे, तालाय, बाग, बगीचे और अनेक औषधालय और पथिकाश्रम बनवाये। संक्षेप में हम निर्विवाद यह कह सकते हैं कि महाराजा खारवेल के साम्राज्य में धार्मिक स्वतन्त्रता के कारण किसी को कष्ट नहीं था सुख, वैभव और सम्पत्ति भरपूर थी, शान्ति और आनन्द का साम्राज्य था । સફળ જન્મ सम्यग्दर्शनशुद्धं यो ज्ञानं विरतिमेव चाप्नोति । दु वनिमित्तमपीदं तेन लब्धं भवति जन्म ॥ જે સભ્યને કરીને શુદ્ધ એવા જ્ઞાન અને ચરિત્રને મેળવે છે, તે દુઃખના કારખભત એવા પશુ જન્મને સફળ બનાવે છે. ઉમાસ્વાતિ વાચક For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520001
Book TitleJain Journal 1938 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Bhawan Publication
PublisherJain Bhawan Publication
Publication Year1938
Total Pages646
LanguageEnglish
ClassificationMagazine, India_Jain Journal, & India
File Size32 MB
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