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________________ [ एक सत्य घटना ] लेखक - श्रीयुत नथमलजी विनोरिया - वीर विक्रमसी ग्रीष्म ऋतु के दिन थे। दोपहर का समय था । धूप तेजी से पड़ रही थी । ऐसे समय में एक युवक अपने सिर पर कपड़े की गठरी और हाथ में कपड़े धोने की मुगदर लिए अपनी धुन में मस्त चाल से नदी की ओर से चला आ रहा था। घर आकर अपने सिर से कपडे की गठरी नीचे रक्खी और मुगदर को एक और कौने में रख शान्ति लेने बैठा । यह युवक भावसार जाति का टीमाणीया गौत्र का वीर विक्रमसी था। उसका निवासस्थान महातीर्थ श्रीशत्रुंजयगिरि की शीतल छाया में पालीताने में था । बह विस्तार परिवारवाला था । वह ब्रह्मचर्य आश्रम ही में था । उसके भाई तथा भावज आदि कुटुम्ब में थे । वे सभी एक ही साथ रहते थे और कपडे रंगने का धन्धा कर अपना निर्वाह चलाते थे । प्रतिदिन के नियमानुसार आज भी विक्रमसी नदी पर कपडे धोने गया और कार्य समाप्त होने पर घर लौट आया । श्रमके कारण विक्रमसी को क्षुधाने सताया। उसको दूर करने के लिए उसने शीघ्र ही हाथ-पांव धोए और जलका लोटा भर कर रसोड़े में गया, किन्तु वहां रसोई का कुछ ठिकाना न दिखाई दिया, किसी कारण आज भोजनमें बिलम्ब हो गया था । जब विक्रमसी रसोडे से बिना भोजन किए बाहर निकला तो उसका मस्तिष्क फिर गया, क्षुधा देवीने तो अपना आतंक जमा ही रक्खा था, क्रोध दूर खडा खडा प्रतीक्षा कर रहा था, मौका देखते ही उसने भी अपना अधिकार जमाया। इन दोनों के आक्रमण से विक्रमसी अपने आपे से बाहर हो गया और नहीं कहने योग्य शब्द कह गया । क्या आज दोपहर होने पर भी भोजन नहीं बना घर बैठे बैठे इतना भी काम नही बनता दूसरा कार्य है भी क्या ? अबसे ऐसा न हो, नहीं तो ठीक न होगा, इत्यादि शब्द कहने लगा। भाभीने भी क्रोधावेश में आकर उसके शब्दों का प्रतिकार किया और कहने लगी इतना जोर किस पर जमाते हो ? यदि बल है तो जाओ ! और सिद्धा चलजी की यात्रा मुक्त करो। उस समय सिद्धाचलजी के मूलनायकजी की ट्रंक पर एक सिंह रहता था । उसके भय से यात्री ऊपर नहीं जाते थे। इस कारण लगभग यात्रा बन्द थी । 'उस सिंह के समक्ष जाकर अपना पराक्रम दिखाओ " ऐसा भाभीने ताना मारा । ? 66 विक्रमसी सच्चा वीर था, सच्चा युवक था, उसकी रग रग में वीरता का लड्डू भरा हुआ था। भला वह वीर भाभी के इन वाक्बाणों को कब For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.520001
Book TitleJain Journal 1938 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Bhawan Publication
PublisherJain Bhawan Publication
Publication Year1938
Total Pages646
LanguageEnglish
ClassificationMagazine, India_Jain Journal, & India
File Size32 MB
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