________________ - जिन सूत्र भाग: 2 विज्ञान-वनस्पति-विज्ञान। उसे दिखाई पड़ता है वृक्ष किन सत्य बड़ा विराट है। उसमें विज्ञान भी समा जाता है, उसमें तत्वों से बना है। उसे दिखाई पड़ता है किन-किन खनिज से काव्य भी समा जाता है। उसमें सारे तथ्य भी समा जाते हैं और मिलकर बना है। पृथ्वी ने क्या-क्या दिया, हवा-पानी से क्या सारी कल्पनाएं भी समा जाती हैं। उसमें गणित और तर्क भी | मिला, आकाश-सूरज ने क्या दिया। वैज्ञानिक को दिखाई पड़ता समा जाता है। उसमें रस और भक्ति और प्रेम भी समा जाता है। है, यह वृक्ष कैसे निर्मित हुआ है। कैसे इसका सृजन हुआ है। जब हम भक्ति की तरह देखते हैं तो हम कुछ चुनते हैं। और किन चीजों के तालमेल से यह घटना घटी। जब हम तर्क की तरह देखते हैं तब भी हम कुछ चुनते हैं। जो भी कवि भी उसी वृक्ष के नीचे आता है। उसे इस सबकी कुछ भी हम देखते हैं वह हमारा चुनाव है। इसका महावीर को बोध था। याद नहीं आती। नहीं कि जो वैज्ञानिक कहता है वह गलत है। इसलिए महावीर ने अपनी दष्टि तो कही, साथ ही यह भी कहा | उसे खनिज, रसायन, पदार्थ, जिनसे बना है वृक्ष, उनका कोई भी कि यह दृष्टि मात्र है। और सभी दृष्टियों से जो पार हो जाता है, बोध नहीं होता। उसे कुछ और ही बोध होता है। | वही परम सत्य को जान पाता है। जो न वैज्ञानिक रह गया, न उसे दिखाई पड़ती हैं सूरज की किरणे वृक्ष की पत्तियों पर कवि रह गया। जिसके पास अपने देखने का कोई पक्षपात नहीं, नाचतीं। उसे एक सौंदर्य का, एक अपूर्व सौंदर्य का अनुभव | कोई चश्मा नहीं। जिसकी आंख खुली, खाली, निर्दोष, कुंआरी होता है-ऐसा कि वह खुद भी नाच उठे। हवा के गुजरते हुए है। जो कुंआरी आंख से देखता है। झोंके उसे किसी और ही लोक की खबर और संदेश दे जाते हैं। लेकिन कुंआरी आंख से देखना बड़ा कठिन है। क्योंकि वह गुनगुनाने लगता है। कुंआरी आंख से देखने का अर्थ है, हृदय भी सत्य जैसा विराट . वैज्ञानिक गंभीर हो जाता है। सोचने लगता है, विचारने लगता होना चाहिए। क्योंकि सारे विरोध समाहित करने होंगे। रात है, विश्लेषण करने लगता है। कवि गुनगुनाने लगता है। गंभीर और दिन को विरोध में खड़ा न करना होगा। सुख और दुख को रहा हो तो गंभीरता गिरा देता है, नाचने लगता है। विरोध में खड़ा न करना होगा। जीवन और मृत्यु को विरोध में / दोनों सच हैं। सत्य इतना बड़ा है कि दोनों सच हो सकते हैं, खड़ा न करना होगा। दोनों को साथ-साथ देखना होगा. विपरीत साथ-साथ सच हो सकते हैं। सत्य के साथ कंजूसी मत करना। की तरह नहीं, एक-दूसरे के परिपूरक की तरह। बहत कंजसी हुई है इसलिए इसे मैं कहता ह। सत्य के साथ जैसे शिक्षक काले ब्लैकबोर्ड पर सफेद खडिया से लिखता है। कंजूसी मत करना। ऐसा मत कहना कि मेरी दृष्टि जहां पूरी होती काले ब्लैकबोर्ड पर ही लिखा जा सकता है सफेद खड़िया से। है वहां सत्य पूरा हो जाता है। तुम्हारी दृष्टि की सीमा है, सत्य की सफेद दीवाल पर लिखोगे तो दिखाई न पड़ेगा। तो काला सफेद कोई सीमा नहीं। सत्य इतना बड़ा है कि अपने विरोधी को भी का दुश्मन नहीं है, परिपूरक है। सफेद को उभार लाता है, सफेद समा लेता है। सत्य इतना विराट है कि विरोधाभास भी संयुक्त को प्रगट करता है, सफेद के लिए अभिव्यक्ति और अभिव्यंजना हो जाते हैं, परिपूरक हो जाते हैं। बनता है। अमरीका के बड़े महत्वपूर्ण कवि वाल्ट ह्विटमेन से किसी ने दुनिया से जिस दिन कविता खो जाएगी, उस दिन विज्ञ कहा, तुम्हारी कविताओं में बड़े विरोध हैं, बड़े विरोधाभास हैं, खो जाएगा। जिस दिन दुनिया से विज्ञान खो जाएगा, उस दिन कंट्राडिक्शन हैं। कहीं तुम एक बात कहते हो, कहीं दूसरी बात कविता भी खो जाएगी। वे एक-दूसरे को उभारते हैं, प्रगट करते कहते हो। कहीं तुम एक बात कहते हो, कहीं ठीक उससे उल्टी हैं। दुनिया समृद्ध है क्योंकि अनंत-अनंत दृष्टियों का यहां मेल बात कहते हो। पता है वाल्ट बिटमेन ने क्या कहा? वाल्ट ह्विटमेन ने कहा, मैं बहुत विराट हूं। मेरे भीतर सभी विरोध समा अलग-अलग देखने की दृष्टियां हैं। जाते हैं और परिपूरक हो जाते हैं। तुम्हें जो रुचिकर लगे, तुम्हें जो भा जाए उस पर चलना। यह वचन तो ऋषि का हो गया। यह तो बड़ी सूझ का हो गया। लेकिन भूलकर भी ऐसा मत सोचना कि यही सत्य है, यही मात्र यह तो बड़ी अंतर्दृष्टि का हो गया। सत्य है। जिसने ऐसा सोचा, यही सत्य है, उसने अपने सत्य को है - हा दानया मइतनयम ह, वमनष्य द्ध करते हैं। वे 1592 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org