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________________ OT म के दो रूप संभव हैं: एक विज्ञान जैसा, एक | कुछ ऐसा है, जो भक्त के भीतर प्रगट होगा। व काव्य जैसा। जीवन को देखने के दो ही ढंग हैं, दो | भक्त बीज है भगवान का। ही ढंग हो सकते हैं या तो कवि की आंख से. या तो जब बीज खिलता है. फलता है तो ऐसा थोडे ही कि बीज वैज्ञानिक की आंख से। दोनों सही हैं। दोनों में कोई ऊंचा-नीचा अपने खिले हुए फूलों को देखता है; बीज तो खो गया होता है। नहीं है, पर दोनों बड़े विपरीत हैं। खिले फूल होते हैं। बीज का और वृक्ष का कभी मिलना थोड़े ही जो काव्य की दृष्टि से सही है, वही विज्ञान की दृष्टि से होता है। जब तक बीज है तब तक वृक्ष नहीं है, जब वृक्ष है तब कल्पना मात्र मालूम होता है। जो विज्ञान की दृष्टि से सही है, बीज जा चुका। वही काव्य की दृष्टि से अत्यंत रूखा-सूखा, गणित और तर्क तो भगवान का दर्शन, ऐसी कोई चीज महावीर के साथ संभव मालूम होता है। जो विज्ञान की दृष्टि से सत्य है वह काव्य की नहीं है। भक्त ही अपनी परमशुद्ध अवस्था में भगवान हो जाता दृष्टि से मुर्दा मालूम होता है। और जो काव्य की दृष्टि से सत्य है। इसलिए पूजा किसकी? अर्चना किसकी? दीये किसके है वह विज्ञान की दृष्टि से केवल सपना मालूम होता है। नाम पर जलें? यज्ञ, हवन किसका हो? इसे अगर खयाल रखा तो बड़ी सुगमता होगी। महावीर का महावीर मनुष्य-जाति के उन थोड़े-से प्राथमिक अग्रणी लोगों जीवन को देखने का ढंग वैज्ञानिक का ढंग है। वे ऐसे देखते हैं, में से हैं, जिन्होंने धर्म को विज्ञान की शक्ल दी; जिन्होंने धर्म को जैसे वैज्ञानिक अपनी प्रयोगशाला में निरीक्षण करता है। उनकी गणित का आधार दिया। जो-जो कल्पना-पूर्ण था वह अलग दृष्टि में काव्य बिलकुल नहीं है। इसलिए भक्ति का कोई उपाय | कर लिया। महावीर के साथ नहीं है। प्रार्थना का, पूजा का कोई उपाय | ध्यान रखना, जब मैं कह रहा हूं कल्पनापूर्ण, तो मैं नहीं कह महावीर के साथ नहीं है। रहा हूं असत्य, क्योंकि मेरे लिए भक्त भी उतने ही सच हैं, नारद और जिन्होंने महावीर के साथ पूजा और प्रार्थना जोड़ ली, भी उतने ही सत्य हैं और चैतन्य भी और मीरा भी। ये देखने के उन्होंने बड़ा अन्याय किया है। महावीर के साथ तो परमात्मा दो ढंग हैं। शब्द का भी कोई अर्थ नहीं है। महावीर के लिए तो परमात्मा भी एक वैज्ञानिक वक्ष के पास आए तो उसे सौंदर्य दिखाई नहीं आदमी का कल्पनाजाल है। आत्मा ही सब कुछ है। आत्मा की पड़ता, इसलिए नहीं कि सौंदर्य नहीं है। वृक्ष हरा है, फूल से भरा ही श्रेष्ठतम दशा को उन्होंने परमात्मा कहा है। परमात्मा कहीं है है; सूरज की रोशनी में नाचती उसकी पत्तियां हैं, हवाओं के नहीं, जिसे हमें खोजना है। परमात्मा हमें होना है। परमात्मा झोंकों में प्रफुल्लित मग्न खड़ा है। लेकिन वैज्ञानिक को कुछ भी ऐसा कुछ नहीं है, जो भक्त के सामने खड़ा हो जाएगा। परमात्मा यह दिखाई नहीं पड़ता। वैज्ञानिक को दिखाई पड़ता है वृक्ष का 591 ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340160
Book TitleJinsutra Lecture 60 Trigupti aur Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size42 MB
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