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________________ प्रेम के कोई गणस्थान नहीं में तुम भूल जाओगे गुरु को और एक गहरे अर्थ में पहली दफे तुम उसे पाओगे। अपने ही भीतर विराजमान पाओगे। तुम्हारे ही सिंहासन पर विराजमान पाओगे। तुम्हारी ही आत्मा जैसा विराजमान पाओगे। अचानक तुम पाओगे, गुरु और शिष्य दो नहीं थे। मैं तुम्हारी ही संभावना हूं। जो तुम हो सकते हो, उसकी ही खबर हूं। लेकिन छुड़ाने की कोई जल्दी नहीं है। जल्दी छुड़ाने में तो तुम अटके रह जाओगे। लाभ भी न होगा। छूटना तो हो ही जाएगा। सीख लो। जाग लो। तुम हो जाओ। मां अपने छोटे बच्चे को चलना सिखाती है। हाथ पकड़कर सिखाती है। हालांकि बच्चा हाथ छोड़ना चाहता है। क्योंकि बच्चे के अहंकार को चोट लगती है कि कोई और मेरा हाथ पकड़कर चलाए। लेकिन मां पकड़ती है। माना कि बच्चे के अहंकार को चोट लगती है, लेकिन अभी उसे उस पर छोड़ा भी नहीं जा सकता है। अभी तो तुम छुड़ाओगे भी तो मैं न छोडूंगा। अभी भी तुम भागोगे तो मैं तुम्हारा पीछा करूंगा। तुम कहीं भी निकल जाओ, मैं छाया की तरह तुम्हें सताऊंगा। अभी तो उपाय नहीं है। तो मां पकड़ती है बच्चे का हाथ। फिर एक दिन बच्चा चलने लगता है, तो चुपचाप हाथ को छुड़ाती है—फिर चाहे बच्चा पकड़ना भी चाहे। क्योंकि अब बच्चे को भी समझदारी आ गई है इतनी कि मां के हाथ में हाथ हो तो ज्यादा सुरक्षित। अनुभव ने सिखा दिया। कई दफे गिरा है, घुटने टूट गए हैं, अब अनुभव ने सिखा दिया है कि यह हाथ पकड़े ही रहूं। लेकिन अब मां छुड़ाती है। यही तो जीवन का विरोधाभास है। एक दिन पकड़ना पड़ता है, एक दिन छुड़ाना पड़ता है। जिस सीढ़ी से चढ़ते हो उसे छोड़ना पड़ता है। जिस नाव से दूसरे किनारे जाते हो, उससे उतरना पड़ता है। इसलिए अभी नमन करो, फिर नमस्कार भी हो जाएगा। तुम न करोगे तो मैं कर लूंगा। आज इतना ही। 5411 __Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340157
Book TitleJinsutra Lecture 57 Prem ki Koi Gunsthan Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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