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________________ जिन सूत्र भाग : 2 समझते हुए जीयो और मर जाओ; और तुम्हें अपनी कोई जीवंत | उस दिन तुम जल्दी न करोगे हाथ छुड़ाने की। अनुभूति न हो। जमाले-इश्क में दीवाना हो गया हूँ मैं मेरी बात तुम सुन रहे हो। अगर मेरी बात को संगृहीत करने यह किसके हाथ से दामन छुड़ा रहा हूँ मैं? लगे तो खतरा है। सुनो मेरी, गुनो अपनी। समझो, संग्रह मत प्रेम में कैसा पागलपन हो गया! करो। याददाश्त भरने से कुछ भी न होगा। स्मृति के पात्र में जमाले-इश्क में दीवाना हो गया हूं मैं तुमने, जो-जो मैंने तुमसे कहा, इकट्ठा भी कर लिया तो दो कौड़ी प्रेम में ऐसी दीवानगी भी आती है कि प्रेमी से ही हाथ छुड़ाकर का है। उससे कुछ लाभ नहीं। तुम्हारा बोध जगे। जो मैं कह | भागने के लिए आदमी तत्पर हो जाता है। रहा हूं उसे समझो, उससे जागो। कोई परीक्षा थोड़ी ही देनी है। जमाले-इश्क में दीवाना हो गया हूँ मैं कहीं कि तुमने जो मुझसे सुना, वह याद रहा कि नहीं रहा। यह किसके हाथ से दामन छुड़ा रहा हूँ मैं एक मित्र एक दिन आए, वे कहने लगे, बड़ी मुश्किल है। रोज तुम छुड़ाओ मत। जल्दी मत करो। मैं खुद ही चुपचाप हाथ आपको सुनता हूं लेकिन घर जाते-जाते भूल जाता हूं। तो अगर अलग कर लूंगा। तुम जरा तैयार हो जाओ, तुम पकड़ना भी मैं नोट लेने लगू तो कोई हर्ज तो नहीं? तो नोट लेकर भी क्या | चाहोगे तो मैं पकड़ने न दूंगा। क्योंकि अगर मैंने तुम्हें पकड़ने करोगे? अगर नोट लिया तो नोट-बुक का मोक्ष हो जाएगा, | दिया तो मैं तुम्हारा दुश्मन हुआ, मित्र न हुआ। कल्याणमित्र तो याद तो नोट-बुक को रहेगा। तुमको तो वही है, जो तम्हें तम्हारा बोध टे तुम्हें तुम्हारा बोध दे जाए और हट जाए बीच से। जो रहेगा नहीं। तुम्हें परमात्मा के द्वार तक पहुंचा जाए, फिर तुम लौटकर उसे और याद रखने की जरूरत क्या है? मैंने उनसे पूछा, याद | खोजो तो मिले भी न। रखकर करोगे क्या? समझ लो, बात हो गई। सार-सार रह मगर ऐसा सदगरु कभी खोता नहीं, क्योंकि तम उसे अपने जाएगा। फूल तो विदा हो जाएंगे, सुगंध रह जाएगी। पहचानना अंतर्तम में विराजमान पाओगे। तब तुम अचानक पहचानोगे भी मुश्किल होगा, किस फूल से मिली थी। लेकिन उस सुगंध एक दिन, जो बाहर से बोला था, वह भीतर की ही आवाज थी। के साथ-साथ तम्हारे भीतर की सगंध भी उठ आएगी। उस जिसने बाहर से पकारा था वह भीतर से ही उठी पकार थी। वह सुगंध का हाथ पकड़कर तुम्हारी सगंध भी लहराने लगेगी। जो बाहर दिखाई पड़ा था वह अपने ही अंतर्तम की छवि थी। तो एक दिन तो गुरु को नमस्कार करना ही है। नमन से शुरू | बाहर जिसके दर्शन हुए थे, वह अपना ही भविष्य रूप धरकर करना, नमस्कार से विदा देनी। इसे याद रखना। इसे भूलना | आया था। मत। कृष्ण से उतना खतरा नहीं है, जितना तुम्हारे लिए मुझसे | घबड़ाओ मत। अभी तो तुम भुलाने की कोशिश करोगे तो खतरा है। क्योंकि कृष्ण से तुम्हारा कोई लगाव ही नहीं। जिनका भुला न सकोगे। जब तक जाग नहीं गए तब तक भलाना संभव लगाव है, वे तो मेरे पास आते भी नहीं। तो कृष्ण को तो तुम बड़े भी नहीं, उचित भी नहीं। संभव हो तो भी उचित नहीं। मजे से नमस्कार कर सकते हो। असली कठिनाई तो मझे किस-किस उन्वां से भुलाना उसे चाहा था रविश नमस्कार करने में आएगी। किसी उन्वां से मगर उनको भुलाया न गया करने के पहले नमन का अभ्यास करना जब तक तम जाग ही नहीं गए हो. जब तक तम अपने प्रीतम होगा। नमन ही लंबा होकर नमस्कार बनता है। झुको! तुम स्वयं ही नहीं बन गए हो, तब तक तुम भुला भी न सकोगे कृष्ण अगर झुके तो तुम्हारे भीतर कोई जगेगा। तुम अगर अकड़े रहे तो को, या महावीर को, या मोहम्मद का। तम्हारे भीतर कोई झका रहेगा। तम झको तो तुम्हारे भीतर कोई किस-किस उन्वां से भलाना उसे चाहा था रा खड़ा हो जाएगा। किसी उन्वां से मगर उनको भुलाया न गया बाहर का गुरु तो केवल थोड़ी देर का साथ है ताकि भीतर का भुलाने की जल्दी भी मत करो। जागने की फिक्र करो। भुलाने गुरु जग जाए। और जिस दिन तुम्हें यह समझ में आ जाता है, | पर जोर मत दो, जागने पर जोर दो। इधर तुम जागे, कि एक अर्थ 5401 Jan Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340157
Book TitleJinsutra Lecture 57 Prem ki Koi Gunsthan Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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