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________________ जिन सूत्र भाग : 2 मी की झंझट है। तुम्हें अपना सारा जीवन रूपांतरित करना पड़े। | की, जो है; तुम उस वृक्ष की छाया में नहीं बैठते जो कभी था। मानने का और क्या अर्थ होता है? चरण छू आए, सिर झुका | पागल होओगे तुम अगर उस वृक्ष की छाया में बैठोगे। न वृक्ष आए, इससे क्या होगा? | है, न छाया है। धप से जलोगे। अगर प्यास लगती है तो तम इसलिए मुर्दा पुरुषों को मानने में सुविधा होती है। वे तुम्हें उस सरोवर के पास जाते हो, जो अभी है। तुम उस. सरोवर के बदल नहीं सकते। उनके साथ कोई जोखिम नहीं है—मरे पास नहीं जाते, जो कभी था। रहा होगा। बड़ा सुंदर था। पुराणों महावीर क्या करेंगे तुम्हारा? जा चुके महावीर क्या करेंगे में उल्लेख है लेकिन उससे प्यास तो न बुझेगी। भूख लगती है, तुम्हारा? जहां बिठाओगे वहां बैठेंगे, जहां उठाओगे वहां तो तुम अभी ताजा भोजन खोजते हो।। उठेंगे। जो पूजा लगा दोगे वही स्वीकार करेंगे। न लगाओगे तो जो भूख और प्यास के संबंध में सही है, वही सत्य के संबंध में बैठे रहेंगे। भूखे बैठे रहेंगे। फूल न चढ़ाओगे तो क्या करेंगे? | भी सही है। सत्य खोजो अभी। जाओ किसी सरोवर के पास, अतीत के महापुरुष जा चुके। अब तो राख के ढेर रह गए। जो अभी हो। खतरा यह है कि शायद तुम इस सरोवर के पास उनके साथ बड़ी सुविधा है। तुम बदलते नहीं। तुम जैसे हो वैसे भी जाओगे, लेकिन जब यह जा चुका होगा। तुम्हारी बुद्धि इतनी ही रहते हो। वस्तुतः तुम अपने महापुरुष को अपने ढंग से बदल मंद है कि जब तक तुम्हारी समझ में आ पाता, तब तक जिन पुरुष लेते हो। विदा हो जाते हैं। घसिट-घसिटकर बामुश्किल तुम्हारी अकल केवल मरे हुओं के साथ कर सकते हो। जिंदा में घुस पाती है बात कि अरे! लेकिन जब तक तुम अरे कहते हो पुरुष, जिंदा जाग्रत व्यक्ति को, जिंदा सिद्ध को तम नहीं बदल तब तक विदाई हो गई। सकोगे। वह तुम्हें बदलेगा। जब तुम उसके पास जाओगे तो तुम बुद्ध एक गांव से गुजरे तीस सालों तक। कहते हैं मिटोगे, नए होओगे। वह तुम्हारी मृत्यु बनेगा और नया जीवन करीब-करीब पंद्रह बार उस गांव से गुजरे। और एक आदमी भी। उसके माध्यम से तुम एक नए आलोक को उपलब्ध तीस सालों से चाहता था कि उनके दर्शन कर ले न कर पाया। होओगे। लेकिन अंधेरे की दुनिया छोड़नी पड़ेगी। बहुत कुछ कभी दुकान पर ग्राहक थे और न जा पाया। कभी लड़की की खोना पड़ेगा, तब तुम कुछ पा सकोगे। शादी थी और न जा पाया। कभी बीमार था, कभी पत्नी से बात तो बिलकुल ठीक है कि जिन-शासन के अतिरिक्त सभी झगड़ा हो गया। कभी जा रहा था और रास्ते में कोई पुराना शासन मिथ्या हैं। लेकिन मानने का कारण, मानने की मूल वृत्ति | परिचित मित्र मिल गया तो फिर घर लौट आया। कभी घर बड़ी खतरनाक है। सत्य बातों को भी हम गलत कारणों से मान मेहमान आ गए तब उनको छोड़कर कैसे जाए? / सकते हैं। हम इतने गलत हैं कि ठीक बातें भी हमारे हाथ में ऐसे हजार बहाने मिलते रहे और बुद्ध आते रहे और जाते पड़ते-पड़ते गलत हो जाती हैं। हम ऐसे गंदे हैं कि अमृत भी हम रहे-तीस साल। एक दिन अचानक गांव में खबर आयी कि पर बरसे तो जहर हो जाता है। आखिर हमारी प्याली में ही बुद्ध आज शरीर छोड़ रहे हैं, तब वह भागा। बुद्ध ने अपने भरेगा। हमारी प्याली की गंदगी उसे रूपांतरित करती है। भिक्षुओं से पूछा उस सुबह, कुछ पूछना तो नहीं है? क्योंकि सत्य के खोजी को अभी खोजना होगा। गुरु अभी हो सकता अब विदा की वेला आ गई। अब मैं जाऊंगा। कहा होगा, मेरी | है। कल के गुरु काम नहीं आएंगे। बीते कल के गुरु काम नहीं नाव लग गई किनारे, अब मैं जाता हूं दूसरी तरफ। कुछ और तो | आएंगे। आनेवाले कल के गुरु भी काम नहीं आएंगे। पूछना नहीं है ? कोई आखिरी बात? आज-जीवन आज है। भिक्षु तो रोने लगे। इतना दिया था बुद्ध ने। बिना पूछे दिया तम महावीर के समय में जी कैसे सकते हो? तम महावीर के | था। पछा था तो दिया था. न पछा था तो दिया था। पछने को साथ चल कैसे सकते हो? तुम महावीर की छाया में हो कैसे | कुछ बचा न था। और ऐसी दुख की घड़ी में, जब वे विदा हो रहे सकते हो? वह वृक्ष न रहा। अगर आज तुम्हें भरी दुपहरी में | हों, किसको प्रश्न उठे? ऐसी दुख की घड़ी में मन तो बंद हो सिर से पसीना बहने लगता है तो तुम छाया खोजते हो किसी वृक्ष जाता है, हृदय रोने लगता है। आंसू बहने लगे। उन्होंने कहा, 1484 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340155
Book TitleJinsutra Lecture 55 Aaj Laharo me Nimantran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size52 MB
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