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________________ माज लहरों में निमंत्रण हमें कुछ पूछना नहीं है। जितना दिया है उसे भी अगर हम कर कह रहे हों, उनका कोई मूल्य नहीं है। उनका आदेश मानकर मत पाए, उसका अंश भी कर पाए तो बस काफी है। तुमने सागर | चल पड़ना, अन्यथा भटकोगे। अंधे अंधों को और भटका देंगे। उंड्रेला है अमृत का, अगर हम एक बूंद भी पी पाए तो बस अंधों का सहारा पकड़कर मत चलना। अंधे तो गिरेंगे, तुम भी पर्याप्त हो जाएगी। गिरोगे। अंधा अंधा ठेलिया दोनों कूप पड़त। बुद्ध ने तीन बार पूछा, जैसी उनकी आदत थी। फिर से पूछा इतना ही अर्थ है जिन-शासन को स्वीकार करने का कि जहां कि किसी को कुछ पूछना हो। फिर से पूछा कि किसी को कुछ जिनत्व दिखाई पड़े, जहां कोई जाग्रत और जीता हुआ व्यक्ति पूछना हो। जब किसी ने कुछ न कहा तो उन्होंने कहा, | दिखाई पड़े, जहां तुम्हारे प्राण कहने लगें कि हां, संभावना यहां अलविदा। वे वृक्ष के पीछे चले गए। उन्होंने आंख बंद कर ली है, जहां सुबह होती दिखाई पड़े, जहां सूरज ऊगता दिखाई पड़े, और वे देह को छोड़ने लगे। उन्होंने देह छोड़ दी। भीतर धारणा | वहां झुक जाना; उस शासन को स्वीकार कर लेना। की कि देह से अलग हो जाऊं, अलग हो गए। तो बात तो ठीक ही है। मैं यह नहीं कह रहा हूं लेकिन कि जो मन को छोड़ रहे थे, तभी वह आदमी भागा हुआ गांव से उसको मानते हैं वे ठीक हैं। बात तो ठीक है, बात को माननेवाले पहुंचा। और वह चिल्लाया कि बुद्ध कहां हैं? मुझे मिलने दो, | गलत हैं। कहते तो हैं, जिन-शासन एकमात्र सत्य है और बाकी मुझे जाने दो, मुझे कुछ पूछना है। सब मिथ्या। लेकिन मानते शास्त्र को हैं, जिन को थोड़े ही! भिक्षुओं ने कहा, बड़ी देर लगाई। तीस साल तुम्हारे गांव से | मानते परंपरा को हैं, जिन को थोड़े ही! मानते पंडित को हैं, गुजरे। और अनेक बार हम तक ऐसी खबर भी आयी कि तुम पंडित की व्याख्या को मानते हैं। आना चाहते हो लेकिन तुम कभी आए नहीं। जाग्रत पुरुष का सीधा दर्शन तो जलानेवाला है। वहां तो कुछ उसने कहा, करूं क्या, कभी मेहमान आ गए, कभी पत्नी | छूटेगा, मिटेगा, गिरेगा, बदलेगा। वहां तो तुम अस्तव्यस्त बीमार पड़ गई। कभी दुकान पर ग्राहक ज्यादा थे। कभी आया | होओगे। तुम, तुम ही न रह सकोगे। वहां तो तुम आग से भी था तो रास्ते में कोई मित्र मिल गया कई वर्षों का, तो फिर घर गुजरोगे। आग से गुजरे बिना कोई शुद्ध कुंदन बनता भी नहीं। लौट गया। हजार कारण आ गए, मैं न आ पाया। लेकिन मुझे वहां तो तुम पीटे जाओगे, मिटाए जाओगे, रचे जाओगे। बिना रोको मत। कहां हैं बुद्ध? विध्वंस के सृजन होता भी नहीं। वहां तो जैसे कुम्हार मिट्टी को भिक्षुओं ने कहा, अब असंभव है। हम तो उन्हें विदा भी दे | रौंदता है, ऐसे रौदे जाओगे। बिना रौंदे तुम्हारे जीवन का घट चुके। अब तो वे अपनी ज्योति को समेटने में लगे हैं। बनता भी नहीं। वहां तो तुम चाक पर चढ़ाए जाओगे। लेकिन कहते हैं, बुद्ध ने आंखें खोलीं और उन्होंने कहा, अभी सम्हालेगा भी गुरु, थपकारे भी देगा, मारेगा भी, पीटेगा भी, मैं जीवित हूं और वह आदमी आ गया! चलो देर सही, अबेर | जगाएगा भी। सही, आ तो गया। मेरे नाम पर यह लांछन न रह जाए कि मैं जीवित गुरु के पास होने का अर्थ हुआ, तुम्हें नींद छोड़नी अभी सांस ले रहा था और कोई आदमी द्वार से प्यासा चला पड़ेगी। इसलिए मुर्दा गुरुओं को छाती से लगाए पड़े रहने में गया। कहां है? उसे बुलाओ। वह क्या पूछना चाहता है? ह क्या पूछना चाहता है? बड़ी सुविधा है। मर्तिय को पूजने में बड़ी सुविधा है। वह आदमी फिर भी जल्दी पहुंच गया। और भी उस गांव में और भी बड़े मजे की बात है कि जो कहते हैं कि 'जिन-शासन लोंग रहे होंगे, जो फिर भी न पहुंचे। आदमी बड़ा मंदबुद्धि है। | के अतिरिक्त सब मिथ्या है। उन्हें यह भी पता नहीं कि जिनों ने मंदबुद्धि ही रोग है। न तो जैन का सवाल है, न हिंदू का, न क्या कहा है। उन्हें यह भी पता नहीं कि जिन-शासन का मौलिक मुसलमान का; मंदबुद्धि...। सूत्र यही है कि सभी में कुछ न कुछ सत्य का अंश है। मंदबुद्धि जड़ चीजों को पकड़ लेता है। अब इतना सुंदर विचार तब आदमी की मंदबुद्धि पर बड़ी हैरानी होती है। यह तो है कि जिन-शासन के अतिरिक्त सब मिथ्या है। इसका अर्थ विरोधाभास हो गया। समस्त जिन पुरुषों ने—महावीर ने, बुद्ध हुआ, जाग्रत पुरुष जो कहे उसके अतिरिक्त सोए हुए आदमी जो | ने, कृष्ण ने, सभी ने कहा है कि मैं ही ठीक हूं ऐसी धारणा Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.340155
Book TitleJinsutra Lecture 55 Aaj Laharo me Nimantran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size52 MB
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