SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिन सूत्र भाग : 2 कोई एकाध व्यक्ति ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो पाता है। यह बात हो? क्या ऐसी भी कोई सीमा आती है, जहां कि मैं भूल जाऊं कठिन है। कि मैं साक्षी हूं और कर्ता हो जाऊं? मैं यह कह रहा हूं कि कामवासना दूसरों का भोजन है, भविष्य इस गहरे परीक्षण के लिए उपवास। उपवास आत्मदमन नहीं का भोजन है, आनेवाली पीढ़ियों का भोजन है। इसीलिए है महावीर का, ध्यान का एक गहन प्रयोग है। उपवास शब्द में कामवासना का इतना प्रबल प्रभाव है। तुम्हारे बच्चे तुमसे आने भी वह बात छिपी है। इसलिए महावीर ने उपवास को अनशन को तड़फ रहे हैं। इसलिए तुम लाख चेष्टा करो ब्रह्मचर्य साधने नहीं कहा, भूखा रहना नहीं कहा, उपवास कहा। उपवास का की, उनके प्राण संकट में पड़े हैं। वे धक्के मारेंगे। वे तुम्हारे अर्थ होता है। अपने निकट होना। अपने निकट वास। उपवास नियम तोड़ेंगे, तुम्हारी प्रतिज्ञा का खंडन करेंगे और जन्म लेने की का अर्थ होता है : आत्मा के पास होना। उपवास का अर्थ होता आतुरता प्रगट करेंगे। है, कर्ता से हटना, साक्षी की तरफ धीरे-धीरे सरकना। जब तुम्हारे भीतर कामवासना उठती है तो वह भी तुम्हारी नहीं तो तुम कुछ भी करो, उस करने में अगर साक्षीभाव बना रहे तो है। वह भी आनेवाले जन्मों का, आनेवाले जीवनों का आकर्षण धीरे-धीरे कर्ता से मुक्ति हो जाती है। और कर्ता से मुक्ति होते ही है, खिंचाव है। तुमसे आनेवाले जीवन कह रहे हैं कि अपना | सारे कर्मों का जाल, अनंत जन्मों का, एक क्षण में भस्मीभूत हो काम पूरा करो। इसके पहले कि तुम विदा हो जाओ, तुम माध्यम | जाता है। बनो। जीवन की शृंखला जारी रहे। यह महावीर की बड़ी अनूठी उदघोषणा है। इस उदघोषणा में तो एक तो कामवासना का आदमी पर बड़ा प्रभाव है। लेकिन ही मनुष्य की संभावना है। वह इतना बड़ा प्रभाव नहीं है कि आदमी ब्रह्मचर्य से न रह सके। अगर ऐसा नहीं होता तो फिर मोक्ष की कोई संभावना मानी नहीं क्योंकि दूसरे का जीवन संकट में पड़ता है, तुम्हारा तो पड़ता जा सकती। अगर हम कर्म से ही छूटकर मुक्त हो सकेंगे तो फिर नहीं। तुम तो हो। तुम्हारा तो पड़ता-तुम्हारे मां बाप, उनके मां | हम कर्म से कभी छूट नहीं सकते। कर्ता से छूटने से अगर मुक्ति बाप अगर ब्रह्मचर्य का नियम लेते। तुम तो हो गए। तुम तो हो। होती हो तो मुक्ति संभव है। तम्हारा तो अब कोई संकट में पड़ने का कोई कारण नहीं है। इसे खयाल में रख लेना। यही गीता का भी आत्यंतिक संदेश दूसरी महत्वपूर्ण वासना है भोजन की। वह कामवासना से है कि अर्जुन, तू कर्ता न रह जा। बड़े दूसरे मार्ग से कृष्ण इसी ज्यादा गहरी है, क्योंकि उससे तुम्हारा ही जीवन संकट में पड़ता निष्पत्ति पर पहुंचते हैं कि अर्जुन, तू कर्ता न रह जा। तू कर्म की है। कामवासना से कोई होनेवाले लोग, जिनका हमें कोई पता फिक्र छोड़। कर्म तो होता रहा, होता रहेगा। तू ऐसा भाव छोड़ दे नहीं है, न होंगे। क्या लेना-देना है? लेकिन भोजन छोड़ने से कि मैं कर रहा हूं। तुम नहीं हो जाओगे। महावीर की और गीता की भाषा बड़ी विपरीत है। इसलिए यह तो महावीर ने उपवास को बड़ा गहरा प्रयोग बनाया। समझना भी जरूरी है कि कभी-कभी विपरीत भाषाओं से भी जैसे-जैसे भूख बढ़ती जाती है, तुम्हारा जीवन संकट में पड़ता है, एक ही सत्य की उदघोषणा होती है। भाषा में मत उलझ जाना। वैसे-वैसे तुम्हारे भीतर होश की क्षमता क्षीण होती जाती है। जैन गीता को पढ़ते भी नहीं। जैनों के लिए गीता में कुछ सार भी भूखा क्या न करता? | नहीं मालूम होता। सार तो दूर, खतरनाक मालूम होती है, मनोवैज्ञानिक कहते हैं, भूख सब पापों की जड़ है। शायद सच | हिंसात्मक मालूम होती है। कहते हैं। जब तक भूख न मिटे, दुनिया से शायद पाप मिट भी न | हिंदुओं ने महावीर का उल्लेख ही नहीं किया अपने शास्त्रों में। सकेंगे। भूखा कुछ भी कर सकता है। और भूखा कुछ करे तो | इतना जीवंत व्यक्ति इस भूमि पर चला, हिंदू शास्त्रों में उल्लेख क्षम्य भी मालूम पड़ता है। | भी नहीं है। इससे गहरी और निंदा और विरोध क्या हो सकता महावीर ने गहरे उपवास किए। सिर्फ एक बात जानने के लिए था? जैनों ने तो फिर भी कम से कम थोड़ी भलमनसाहत की। कि क्या ऐसी भी कोई सीमा है भूख की, जहां मेरा होश खो जाता कृष्ण का उल्लेख तो किया। माना कि नर्क में डाला, माना कि 372 Jal Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340150
Book TitleJinsutra Lecture 50 Dhyanagni se Karm Bhasmibhut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy