________________ - ध्यानाग्नि से कर्म भस्मीभूत कृष्ण मरकर सातवें नर्क गए, मगर फिर भी इतना सम्मान तो कभी एक प्रयोग करो छोटा। सपने में जागने की चेष्टा करो। दिया कि उल्लेख किया—निंदा के लिए सही! भूले तो नहीं, कठिन है, लेकिन हो जाता है। अगर रोज-रोज इसी धारणा को बिसराया तो नहीं। लेकिन हिंदुओं ने तो हद्द कर दी। उन्होंने लेकर रात सोओ कि सपने में चेष्टा करूंगा कि जाग जाऊं; कि महावीर को नर्क में डालने योग्य भी न माना। महावीर का सपने को जान लूं कि सपना है। ऐसा अगर रोज रात को सोते उल्लेख ही न किया। अगर बौद्ध शास्त्र न हों तो महावीर का | वक्त यही धारणा, यही भावना करते-करते सोओ तो तीन और उल्लेख सिर्फ जैन शास्त्रों में रह जाएगा। और अगर बौद्ध शास्त्र नौ महीने के बीच किसी न किसी दिन ऐसी घटना घटेगी कि न हों तो जैनों के पास प्रमाण जुटाना भी मुश्किल हो जाएगा कि अचानक तुम सपना देख रहे होओगे और भीतर स्मरण आ महावीर कभी हुए। जाएगा कि अरे! यह तो सपना है। और एक तब अनूठा मीठा इसीलिए जब पहली दफा हिंदू शास्त्रों का पश्चिम में अनुवाद अनुभव होता है। बड़ा अदभुत, बड़ा अनुपम, अपूर्व। क्योंकि हुआ तो पश्चिम के विचारकों ने यही समझा कि महावीर बुद्ध का जैसे ही तुम्हें याद आता है कि अरे! यह तो सपना है कि सपना ही एक नाम है। मूर्ति एक जैसी लगती भी है। उपदेश भी तत्क्षण खो जाता है। और उस सपने के खोने में पहली दफे तुम्हें अहिंसा का कुछ एक जैसा मालूम पड़ता है। यह बुद्ध का ही एक पता चलता है कि होश में आना और सपने का टूट जाना एक ही रूप है। महावीर को स्वीकार ही नहीं किया था। क्योंकि हिंदू सिक्के के दो पहलू हैं। शास्त्रों में कहीं उल्लेख ही नहीं। ऐसा ही जीवन भी एक बड़ा सपना है। कारण क्या रहा होगा? महावीर माया शब्द का भी उपयोग नहीं करते। क्योंकि माया भाषा बड़ी भिन्न है। भिन्न ही कहनी ठीक नहीं, ठीक विपरीत शब्द के उपयोग के लिए भी परमात्मा का होना जरूरी है। वह है। एक अगर रात कहता तो दूसरा दिन कहता; ऐसा फासला परमात्मा की शक्ति हो तो माया। कोई मायावी हो तो माया। है। जमीन और पृथ्वी का फसला है। लेकिन मैं तुमसे कहना कोई जादूगर हो तो जादू। कोई जादूगर तो है नहीं महावीर की चाहता हूं कि दोनों एक ही बात कहना चाह रहे हैं। कृष्ण ईश्वर भाषा में, इसलिए कोई माया भी नहीं है। की धारणा का उपयोग करते हैं उस बात को कहने के लिए। वे लेकिन यह सूत्र घोषणा कर रहा है कि जो कर्म केवल ध्यान में कहते हैं, ईश्वर कर्ता है, तू निमित्त। तू साक्षीभाव से जो हो रहा उतरने से समाप्त हो जाते हैं, वे वस्तुतः न रहे होंगे। अगर रहते है, होने दे। इतना भर खयाल छोड़ दे कि मैं कर रहा हूं। फिर जो तो ध्यान में उतरने से क्या होता था? ध्यान में उतरने से सत्य करवाए परमात्मा, कर। थोड़े ही बदलता है। ध्यान में उतरने से केवल माया ही बदल महावीर परमात्मा की धारणा का उपयोग नहीं करते। उनकी | सकती है। भाषा में परमात्मा का कोई प्रत्यय, कोई प्रतीक नहीं है। वे इतना | तुम कमरे में बैठे हो, आंखें झपकी हैं, सपना ले रहे हो। अगर ही कहते हैं, तू साक्षीभाव से कर। ध्यान की आत्यंतिक गहराई जाग जाओगे तो सपना टूट जाएगा, लेकिन तुम्हारे जागने से में, साक्षीभाव की परमदशा में अचानक तू जागकर देखेगा कि कमरे की कुर्सी, फर्निचर, दीवालें थोड़े ही समाप्त हो जाएंगी। तुझसे अब तक जो हुआ था वह तुझसे हुआ ही नहीं था। जो है, वह तो तुम्हारे ध्यान में जाने से नष्ट नहीं होगा। वस्तुतः यही अर्थ है कि सारे कर्म भस्मीभूत हो जाते हैं। वह तूने स्वप्न तुम जैसे ध्यान में जाओगे, प्रगट होगा, पूरे रूप में प्रगट होगा, में किया था। वह कभी हुआ ही नहीं। सपने के खयाल थे। जो है। जो नहीं है, वहीं खो जाएगा। सपने में बुदबुदाया था। सपने में कुछ सोचा था कि कर रहा हूं, इस सूत्र का मैं यह अर्थ करता हूं कि महावीर यह कह रहे हैं कि कुछ हो रहा है। सुबह जागकर पाया है कि सब सपने व्यर्थ हैं। तुमने अब तक जो किया है, हुआ, वह सब सपने में हुआ है। सुबह जागकर तू हंसा है कि रात जो देखा, कितना सत्य मालूम जागते ही एक क्षण में मिट जाएगा। पड़ता था! कितना यथार्थ मालूम पड़ता था। जागते ही सब खो जह चिरसंचयमिंधण-मनलो पवणसहिओ दुयं दहइ। जाता है। 'जैसे चिर-संचित ईंधन को वायु से प्रदीप्त आग तत्काल जला | 373 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.