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________________ H ध्यान है आत्मरमण - इसलिए महावीर कहते हैं, आशारहितता। आज, कल अत्यंत और अभिन्न क्या? हम अपने को धोखा दिए चले जाते हैं। हम कहते हैं, कल सब सनातन, सिद्ध और समग्र है अच्छा हो सकेगा। मनुष्य की बड़ी से बड़ी जो भ्रांति की कला है, सब अचिंत्य, अनादि और अव्यग्र है वह यह है कि कल थोड़ा सुधार हो जाएगा। आज दुकान ठीक और वह पल जो गया सो गया ही नहीं चल रही है, कल चलेगी। आज ग्राहक नहीं आए, कल जो नया आए, रहे वह नया ही आएंगे। आज सम्मान नहीं मिला, कोई कारण नहीं है, कल क्यों इसे थोड़ा सोचना। न मिलेगा। थोड़ी और कोशिश करें। तुम्हारी आशा के कारण नया भी नया नहीं हो पाता। तुम प्रत्येक नया दिन नई नाव ले आता है, जो-जो योजना बना लेते हो, उसके कारण नए को भी जूठा कर लेकिन समुद्र है वही, सिंधु का तीर वही देते हो, पुराना कर देते हो, आने के पहले ही खराब कर देते हो। प्रत्येक नया दिन नया घाव दे जाता है, तुम्हारी अपेक्षा नए पर पहले से ही छाया डाल देती है। लेकिन पीड़ा है वही, नैन का नीर वही तुम कुछ मानकर चल रहे हो, यह होगा; अगर हुआ तो भी कुछ बदलता नहीं। पीछे लौटकर देखो! रेगिस्तान की मजा नहीं आता। क्योंकि इसको तो तुम बहुत बार सपने में देख तरह...रिक्त है जीवन। अपने अतीत को देखो, वहां कुछ भी चुके थे; बहुत बार सोच चुके थे, वही हुआ। होने के पहले ही नहीं है। न होने का कारण ही जो-जो तुम अतीत में चूक गए हो, पुराना पड़ गया। वह तुम भविष्य में रख लिए हो। जो तुम्हें पीछे नहीं मिल सका, अगर न हुआ तो दुखी होओगे कि नहीं हुआ; अगर हुआ तो उसे तमने आगे सरका लिया है। जो तम सत्य में नहीं पा सके, सखी न होओगे। आदमी का गणित बड़ा अजीब है। उसका सपना देख रहे हो। तुमने खयाल किया, जिससे अपेक्षा हो उससे सुख नहीं जब महावीर कहते हैं, कि 'आशारहितता', तो उनका अर्थ मिलता। राह तुम चल रहे हो, तुम्हारा रूमाल गिर जाए और एक यह है : सत्य यहां है, इस क्षण! तुम इस क्षण से और कहीं न अजनबी आदमी उठाकर रूमाल दे दे तो तुम धन्यवाद देते हो; भटको। तुम इस क्षण में लौट आओ। इस क्षण में होगा मिलन। क्योंकि अपेक्षा नहीं थी। तुम प्रसन्न होते हो कि भला आदमी है। इस क्षण में घटेगी वह क्रांति, जिसको समाधि कहें, सम्यक ज्ञान लेकिन तुम्हारी पत्नी ही रूमाल उठाकर दे दे, तो तुम धन्यवाद भी कहें या कोई और नाम देना हो तो और नाम दें। नहीं देते! हां, अगर उठाकर न दे तो नाराज होओगे कि तुमने इस क्षण से द्वार खुलता है अस्तित्व में। यह क्षण द्वार है। उठाकर दिया क्यों नहीं? उठाकर दे, तो प्रसन्न नहीं होते; न केवल वर्तमान सच है, शेष सब झूठ है। जो बीत गया, बीत | धन्यवाद, न अनुग्रह। न दे तो नाराज होते हो।। गया, अब नहीं है। जो नहीं आया, अभी नहीं आया है। जो बीत | जिससे अपेक्षा होती है, उससे हम दुख पाते हैं, सुख नहीं गया वह कभी सच था, जब वह वर्तमान था। और जो नहीं | पाते। अगर पूरा हो जाए तो होना ही चाहिए था; इसलिए सुख आया है, वह कभी सच होगा लेकिन तभी जब वर्तमान बनेगा। का कोई कारण नहीं है। पत्नी ने रूमाल उठाकर दिया-देना ही तो एक बात तय है कि केवल वर्तमान के अतिरिक्त और कुछ चाहिए था। उसका कर्तव्य ही था। इसमें बात क्या हो गई भी सच नहीं होता। तो तुम वर्तमान में होने की कला सीख धन्यवाद की? अगर न दिया तो कर्तव्य का पालन नहीं हुआ। जाओ, तो सत्य के साथ हो जाओगे। सत्य से सत्संग जुड़ेगा। __ अगर बेटा बाप को सम्मान दे तो कोई सुख नहीं मिलता; न दे और वह पल जो गया, सो गया ही सम्मान तो दुख मिलता है। यह बड़ी हैरानी की बात है। फिर तुम जो नया आए, रहे वह नया ही कहते हो, हम दुखी क्यों हैं? यह नहीं होगा, नया भी जाएगा अगर तुमने धंधा किया और दस हजार रुपये मिलने की आशा और हर क्षण नया ही क्षण आएगा थी, मिल गए तो कोई खास सुख नहीं होता–मिलने ही थे। फिर क्षणिक क्या? खंड क्या है, छिन्न क्या? निश्चित ही था। मिलने के पहले ही तुम योजना बना चुके थे कि 333 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary org
SR No.340148
Book TitleJinsutra Lecture 48 Dhyan hai Aatmraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size32 MB
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