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________________ जिन सूत्र भागः 2 मिलेंगे। इतना ही नहीं, मिलने के बाद क्या-क्या करोगे उस लेना-सभी कुछ अपूर्व है। सबकी भी योजना बना चुके थे। तो जब मिलते हैं, तब चौंकाते लेकिन आशारहित व्यक्ति हो तो प्रतिक्षण सोने का है; नहीं तुम्हें। विस्मय से नहीं भरते, आनंद-विभोर नहीं करते। प्रतिक्षण में सुगंध है, प्रतिक्षण में स्वर्ग है। अगर न मिले तो तुम दुखी जरूर हो जाते हो। | महावीर कहते हैं, 'संसार से जो सुपरिचित, निस्संग, निर्भय महावार कहत हार कलकत्ते में मेरे एक मित्र हैं, उनके घर मैं कभी-कभी रुकता और आशारहित है, उसी का मन वीतरागता को उपलब्ध होता था। एक बार मुझे लेकर एअरपोर्ट से वे घर जा रहे थे, उदास है; और वही ध्यान में सुनिश्चल, भलीभांति स्थित होता है।' थे; तो मैंने पूछा कि क्या मामला है? वे बोले कि बड़ा नुकसान ध्यान की स्थिरता का अर्थ है, वर्तमान के क्षण से यहां-वहां न लग गया, कोई पांच लाख का नुकसान लग गया। उनकी पत्नी जाना; जरा भी डांवाडोल न होना। जो है, उसके साथ पूरी भी पीछे थी कार में, वह हंसने लगी। उसने मुझसे कहा, आप समरसता से जीना। जो है, उससे अन्यथा की न मांग है, न चाह इनकी बातों में मत पड़ना। मैंने कहा, वे उदास हैं और तू हंस रही है, न आशा है। जो है, वैसा ही होना चाहिए। ऐसा ही भाव है। है; बात क्या है? | जो है, वह वैसा है ही जैसा होना चाहिए था। न कोई विरोध है, न तो उसने कहा, मामला ऐसा है कि नुकसान हुआ नहीं, पांच कोई निंदा है, न कोई आलोचना है। लाख का लाभ हआ है। लेकिन दस लाख का होना चाहिए था. तथ्य की इस स्वीकति का नाम तथाता है। और 3 इसलिए ये दुखी हैं। इनको मैं लाख समझा रही हूं कि तुम्हें पांच तथाता को उपलब्ध हुआ, उसको महावीर और बुद्ध दोनों ने लाख का लाभ हुआ। मगर ये कहते हैं, वह कोई सवाल ही नहीं तथागत कहा है। तथागत बुद्ध और महावीर का विशिष्ट शब्द है, दस का होना निश्चित ही था। पांच का नुकसान हो गया। है। उसका अर्थ होता है, तथाता को उपलब्ध; तथ्य की स्वीकृति अब जिसको दस लाख का लाभ होना है, उसे पांच लाख का को पूर्णता से उपलब्ध है। जो है, है; जो नहीं है, नहीं है। और भी लाभ हो तो प्रसन्नता कैसे हो? क्योंकि प्रसन्नता तो तुम्हारी इसमें मेरा कोई चुनाव नहीं है। मैं राजी हूं। जो है, उसके होने से अपेक्षा पर निर्भर होती है। राजी हूं। जो नहीं है, उसके नहीं होने से राजी हूं। अन्यथा की तुम खयाल करना, अगर तुम अपेक्षाशून्य हो जाओ तो तुम्हारे | कोई चाह नहीं है। तथ्य का पूरा स्वागत है। ऐसा व्यक्ति ही जीवन में आनंद की वर्षा हो जाएगी। अगर तुम्हारी कोई आशा न | ध्यान को स्थित होता है। रह जाए तो तम पाओगे, प्रतिपल स्वर्ग के फल खिलने लगे। आमतौर से तो हम रोते ही रहते हैं। लोगों की आंखें देखो. तम जिसकी कोई आशा नहीं है उसे तो सांस चलना भी बड़े आनंद | उन्हें सदा आंसुओं से भरी पाओगे। हजार शिकायतें हैं। की घटना मालूम पड़ती है। जिंदा है, यह भी बहुत है / यह भी शिकायतें ही शिकायतें हैं। सारा अतीत व्यर्थ गया, वर्तमान कोई जरूरी तो नहीं है कि होना चाहिए। इसकी भी कोई ऐसी व्यर्थ जा रहा है, भविष्य की आशा पर टंगे हैं। बड़ा पतला धागा अनिवार्यता तो नहीं है। यह जगत मुझे जिलाए ही रखे, इसकी है, जिससे तलवार लटकी है। वह भी होगा इसका पक्का क्या अनिवार्यता है? मेरे दीये को बुझा दे तो शिकायत कहां भरोसा थोड़े ही है। सिर्फ आशा है, भरोसा नहीं है। करूंगा? अपील की कोई कोर्ट भी तो नहीं है। मेरा दीया जल | भरोसा हो भी कैसे सकता है? आशा तो पहले भी की थी, हर रहा है, यह भी धन्यभाग है। बार टूट गई। आशा-आशा करके तो अब तक गंवाया; मिला जिस व्यक्ति के जीवन में आशा नहीं है, होना मात्र भी परम कुछ भी नहीं। लेकिन बिना आशा के जीयें भी कैसे? तो फिर आनंद है। छोटी-छोटी चीजें आनंद की हो जाती हैं। हवाओं का आगे के लिए सरका लेते हैं। पीछे के लिए रोते रहते हैं, आगे के वृक्षों से गुनगुनाते हुए गुजर जाना! वृक्षों में नई कोपलों का फूट लिए रोते रहते हैं। और बीच के क्षण में परमात्मा तुम्हारे द्वार पर आना ! सुबह पक्षियों की चहचहाहट ! रात आकाश का तारों से दस्तक देता रहता है। परमात्मा कहता है, यहां, इसी क्षण! भर जाना ! राह पर किसी आदमी का नमस्कार कर लेना, किसी खोलो आंखें! देखो, मैं मौजूद हूं! बच्चे का मुस्कुरा देना, किसी का प्रेम से हाथ हाथ में ले लेकिन हमें फुर्सत कहां? वर्तमान का छोटा-सा क्षण, बड़ा 334 | JanEducation International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340148
Book TitleJinsutra Lecture 48 Dhyan hai Aatmraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size32 MB
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