SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 3
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हला प्रश्न: आपकी आंखों से निरंतर आशीर्वाद | होता है। जहां तुम मिटे, परमात्मा हुआ। तुम्हारे मिटे बिना वह बरसता-सा प्रतीत होता है, मधुर और सलोना। | हो भी नहीं सकता। तुम बहुत जगह घेरे हो। उसके लिए श्रोताओं पर आपकी आंखें घूमती हैं और जैसे ही | अवकाश नहीं है भीतर आने को। मिटो, मरो, विदा होओ, मुझ पर पड़ती हैं, लगता है कोई बी मेरे अंतर्तम में छिद ताकि वह आ सके। और तुम ही तुम्हारी बीमारी हो। लेकिन इस गयी। सारा शरीर कांप जाता है। मृत्यु-सी घटित होती है। बीमारी को तुमने अपना शृंगार समझा है। इस अहंकार को तुमने लेकिन आत्यंतिक-मत्य क्यों नहीं घट जाती? अपनी आत्मा समझा है। इससे भल हो रही है। जो मेरे पास आयेंगे, वे चाहे किसी कारण से मेरे पास आ रहे वह भी घटेगी। थोड़ी प्रतीक्षा, थोड़ी बाट जोहनी होगी। प्रारंभ हों, मैं उन्हें पास मरने के लिए ही बुला रहा हूं। मैं उन्हें स्वाद देना हो गया है। धीरे-धीरे मरने की कला आती है। इतना साहस नहीं चाहता हूं मृत्यु का। एक बूंद भी तुम चख लो मृत्यु की, तो मृत्यु होता कि एक छलांग में आदमी मर जाए। रत्ती-रत्ती छटता है। के द्वार से ही अमत की पहली झलक मिलती है। मत्य के लेकिन एक-एक कदम से चलकर हजारों मील की यात्रा पूरी हो आवरण में छिपा है अमृत। मृत्यु की ओट में छिपा है परमात्मा। जाती है। इसलिए चिंता का कोई कारण नहीं है। जब मंसूर को सूली लगी, तो वह आकाश की तरफ देखकर और ध्यान निश्चित ही मृत्यु जैसा है। क्योंकि जिसे हमने खिलखिलाकर हंसने लगा। किसी ने पूछा उस भीड़ में से जो जीवन कहा है वह जीवन नहीं है। और जिसे हमने अब तक मृत्यु उसकी हत्या कर रही थी कि क्या देखकर हंस रहे हो? तो मंसूर समझा है वह मृत्यु नहीं है। हम बड़े धोखे में हैं। जिसे हम जीवन ने कहा, तुम जिसे मृत्यु समझ रहे हो, वह मेरे परमात्मा से मेरा कहते हैं, वह केवल एक सपना है। और जिसे हम मृत्यु कहते मिलन का द्वार है। उसे मैं खड़ा देख रहा हूं। वह हाथ फैलाये हैं, वह है केवल इस सपने का टूट जाना। लेकिन चूंकि सपने को बाहुओं में लेने को तत्पर है। तुम यहां मुझे मारो कि वहां मैं उसके हम सत्य मानते हैं, जोर से पकड़ते हैं उसे, छाती से लगाये रखते | आलिंगन में गिरा। इसलिए हंस रहा हूं कि तुम्हें किसी को हैं उसे। जीवन को जोर से पकड़ने के कारण ही मौत दुखदायी | दिखायी नहीं पड़ता! वह बिलकुल सामने खड़ा है। इधर मेरे मालूम होती है। अन्यथा मृत्यु में कोई दुख नहीं है। मृत्यु विश्राम | मरने की देर है कि उधर मिलन हुआ। जल्दी करो, देर क्यों लगा है, विराम है। जीवन को गलत समझा है, इसलिए मृत्यु के | रहे हो? संबंध में भी गलत दृष्टि बन गयी है। जिन्होंने भी स्वयं को जाना, उन्होंने जाना, मृत्यु कचरे को ले ध्यान है मृत्यु को ठीक-ठीक जानना, पहचानना। अहंकार को जाती है, सोने को तो छोड़ जाती है। व्यर्थ को बहा ले जाती है, धीरे-धीरे डुबाना और खोना। जहां तुम नहीं होते, वहीं परमात्मा सार्थक को तो निखार जाती है, साफ-सुथरा कर जाती है। मृत्यु 263 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340145
Book TitleJinsutra Lecture 45 Jivan Taiyari Hai Mrutyu Pariksha Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy