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________________ MENT जिन सत्र भाग: वरदान है। और जिसे मृत्यु में भी वरदान दिख गया, उसे फिर फिर चूकोगे, फिर उतरोगे जन्म के गड्डे में, फिर भटकोगे इन्हीं कहां वरदान न दिखेगा! जिसने मृत्यु में भी परमात्मा के हाथ देख अंधेरी गलियों में, फिर इन्हीं कंटकाकीर्ण मार्गों पर, फिर इन्हीं लिये, स्वभावतः जीवन में तो उसके हाथ देख ही लेगा। उसने वासनाओं की, इन्हीं क्रोध-कामनाओं की, लोभ, मद-मत्सर की भीड़ में फिर खो जाओगे। जब तक तुम मृत्यु में जीवन का सूत्र न खोज लोगे, तब तक इसलिए कहता हूं, ध्यान मृत्यु है। और अगर तुमने मुझे गौर से तुम्हें बार-बार जन्मना होगा, मरना होगा। तुम फिर-फिर भेजे | देखा, तो उस गौर के क्षण में ध्यान की थोड़ी-सी झलक तुम्हें जाओगे, क्योंकि परीक्षा में तुम उत्तीर्ण नहीं होते। जीवन तैयारी | आयेगी। अगर तुमने शांत होकर मुझे देखा, तो शांति के क्षण में है, मृत्यु परीक्षा है। परीक्षा अंत में है, स्वभावतः। जीवनभर | बी चुभेगी। चुभनी ही चाहिए। वही प्रयोजन है मेरा और तैयारी करते हैं हम, तैयारी किसलिए? कभी सोचा मृत्यु अंत में | तुम्हारा यहां होने का कि मैं तुम्हें थोड़े मृत्यु के दर्शन दे दूं। और क्यों आती है? परीक्षा को अंत में आना ही होगा। मृत्यु जीवन | एक बार तुम्हें मृत्यु की झलक आने लगे और रसधार बहने लगे, की समाप्ति नहीं है। जीवनभर में तुमने कुछ सीखा, कुछ जाना, और तुम देखो कि अरे, कैसा नासमझ था, मृत्यु तो वरदान है, कुछ निचोड़ा, कुछ सार हाथ आया, इसकी परीक्षा है। अगर अब तक मैंने अभिशाप समझा! बस, फिर तुम्हें कोई डिगा न कुछ सार हाथ आया हो, तो मृत्यु तुम्हें मार नहीं पाती। अगर सकेगा। फिर तुम चल पड़े सीधी डगर पर। फिर मिली राह। कुछ भी हाथ न आया हो, तो मृत्यु तुम्हें मार पाती है। फिर फेंके | अब तुम्हारी दिशा उचित हुई। जाते हो जन्म में। जो मृत्यु से चूका, फिर जन्मेगा। जैसे-जैसे मृत्यु का रस बढ़ने लगेगा, वैसे-वैसे जिसे तुम मृत्यु से चूकने के कारण ही जन्म है। जो मृत्यु को जागकर जी | जीवन कहते हो, इससे हाथ छूटने लगेंगे। मैं तुमसे यह नहीं लिया, सौभाग्य से जी लिया, जिसने मृत्यु को आत्मसात कर कहता कि त्यागो। मैं तो सिर्फ इतना ही कहता हूं, जागो। लिया; जो मरा तन्मयता से, आनंद से, अहोभाव से, जिसने जैसे-जैसे जागोगे, त्याग घटता है। किया त्याग भी कोई त्याग मृत्यु में भी परमात्मा के हाथ फैले देख लिये, फिर उसका कोई | है! करना पड़े, बात ही व्यर्थ हो गयी! हो जाए। दृष्टि से हो, जन्म नहीं है। इसलिए मैं कहता हूं, ध्यान तो मृत्यु को ही सीखना | दर्शन से फले, बोध का परिणाम हो। इधर तुम जागो, उधर है। स्वेच्छा से सीखना है। और अभी तुम न सीखोगे तो मौत | जागने की छाया की तरह त्याग भी घटे। स्वाभाविक है कि जब जब आयेगी, तो अचानक तुम अपने को तैयार न कर पाओगे। | कोई चीज व्यर्थ दिखायी पड़ जाए, हाथ से छूट जाए; मुट्ठी खुल मौत तो अचानक आती है, अकस्मात, कोई खबर नहीं देती, | जाए, गिर जाए। उसे त्याग क्या कहना! छूट गयी। छोड़ा, ऐसा कोई पूर्व-संदेशा नहीं भेजती। एक दिन अचानक द्वार पर खड़ी क्या कहना! छोड़ने जैसा क्या है! कचरे में न पकड़ने जैसा है हो जाती है : तुम अस्त-व्यस्त! तुम चलने को तैयार भी नहीं | कुछ, न छोड़ने जैसा है कुछ। लेकिन यह तो मृत्यु के स्वाद से ही होते, बोरिया-बिस्तर भी बांधा नहीं होता, व्यर्थ से सार्थक को | संभव होगा। छांटा नहीं होता, सार से असार को अलग नहीं किया होता, सब तो यहां मेरे पास जब होओ, तब सच ही मेरे पास हो जाओ। उलझा पड़ा होता है-बीच में मौत आकर खड़ी हो जाती है। तब कोई दूरी मत रखो। तब बीच में विचारों का व्यवसाय न क्षणभर का समय भी नहीं देती कि तुम जमा लो, कि तुम तैयारी | चलने दो। तब चिंतन की धारा मत बहने दो। तब हटाकर सब कर लो, कि तुम पाथेय जुटा लो, कि आनेवाली लंबी यात्रा के बदलियों को सीधा-सीधा मुझे देखो! यहां मैं नहीं हूं। जैसे ही लिए तुम अपने को तत्पर कर लो, एक क्षण का अवकाश नहीं; तुम सीधा-सीधा मुझे देखोगे, नहीं होने की एक लहर तुममें भी मौत आयी-समय गया। मौत के आते ही समय नहीं बचता। उठेगी। इधर मैं मिटा हूं, अगर मेरे साथ संगसाथ क्षणभर को भी अकस्मात आनेवाली यह मत्य, इसकी अगर तुमने जीवन में साधा, तो उधर तुम भी पाओगे कि मिटने लगे। रोज-रोज तैयारी न की, तो जैसा पहले भी इसने तुम्हें गैर-तैयार | सत्संग का इतना ही अर्थ है, किसी ऐसे व्यक्ति के सान्निध्य में पाया, इस बार भी पायेगी। | मिटने की कला सीख लेना, जो मिट गया हो। किसी शून्य के 264 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340145
Book TitleJinsutra Lecture 45 Jivan Taiyari Hai Mrutyu Pariksha Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size40 MB
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